एक ऐसा अद्भुत रहस्य जो जानने के पश्च्यात हम सदा के लिए जीवन के “Pain और suffering” (“पीड़ा और कष्ट”) से मुक्त हो जायेंगे
“The Healing of suffering” ह्यूमनिस्ट मूवमेंट के प्रणेता सिलो का पहला संदेश , जैसे जैसे मैं उस संदेश को पढ़ती गयी मुझे अपने भीतर एक अद्भुत आनंद का अनुभव हो रहा था।“ध हिलिंग ऑफ़ सफ़रिंग” का हर शब्द मेरे लिए “खुलजा सिमसिम” जैसा रहस्यमयी खज़ाना खोलने की कुंजी के समान तिलस्मी मंत्र था – “शांति, शक्ति और आनंद के खजाने को पाने का मंत्र।
सिलो के उस संदेश से मैंने जो कुछ समजा , जाना अनुभव किया और अमल किया…वे यहाँ अपने शब्दों में प्रस्तुत कर रही हूँ…
Pain और suffering का ऊपर ऊपर से अर्थ एक सामान लगता है किन्तु थोडा गहराई से जांचने पर भेद समज में आएगा।
Pain (दर्द) शारीरिक या मानसिक कष्ट को दर्शाता है, जो शरीर या मन में होने वाले असुविधाजनक अनुभव से जुड़ा होता है। Suffering (पीड़ा) एक गहरी अवस्था है, जिसमें व्यक्ति लंबे समय तक मानसिक, भावनात्मक या शारीरिक कष्ट से जूझता है। Pain तात्कालिक या क्षणिक हो सकता है। Suffering लंबे समय तक चलने वाला गहन कष्ट होता है।
Pain अधिकतर शारीरिक तकलीफों के साथ जुड़ा हुआ शब्द है ।कभी स्नायुओं में – हाथपैर में तो कभी गर्दन में Pain का अनुभव होता है। विज्ञान जैसे जैसे विकसित होता गया Pain पर काबू पाने के लिए नए नए संज्ञान की खोज होती गयी।Pain से राहत के लिए Pain किलर की खोज हुई – ऑपरेशन ,सर्जरी ,अलग अलग दवाइयां Pain पर काबू करने को उपलब्ध हुई।
किन्तु suffering का क्या ? suffering शारीरिक तकलीफ से अधिक मानसिक भावनात्मक वैचारिक पीडाओं के साथ जुडी हुई परिभाषा के लिए उपयुक्त लगती है … suffering जो भीतर उत्पन्न होती हुई पीड़ा है।
शरीरिक पीडाएं विज्ञान के विकास के साथ कम होती रहती है किन्तु suffering जो मन से जुड़ी है उसका क्या करें ? कभी कभी हमारे मन में डर बना रहता है…कुछ खो देने का , हम अपने अभावो से, खामियों से , कमजोरियों से भी पीड़ा का suffering का अनुभव करते है।
विज्ञान ने बहुत सारी Pain Killer दवाइयों का – इंजेक्शन का उपहार मनुष्य को शारीरिक Pain से मुक्ति के लिए दिया, किन्तु कभी suffering Killer नाम की कोई दवाई या कोई इंजेक्शन का नाम सुना है ? ऐसी कोई advertisement देखि है कि इंजेक्शन लगाओ और suffering से मुक्ति पाओ !
मन की पीड़ा का एक और भी पहलु है – जैसे भविष्य में होनेवाली बीमारी का भय जिसका विचार वर्तमान में पीड़ा दे रहा है , गरीबी का भय , मौत से पहले मृत्यु का भय , अकेलेपन का भय यह सब भय जो वास्तव में है नहीं वर्तमान में नहीं किन्तु मन का आशंका से भरा अनुमान मात्र से अधिक कुछ नहीं है जो वर्तमान में हमारे मन की पीड़ा है…जिसकी संभावना है भी या नहीं भी है किन्तु इस असमंजस में ही पीड़ा है suffering है।
मन की पीड़ा( suffering ) का यदि शमन नहीं हो पाती तो फिर यह पीड़ा गहरा घाव बन जाती है,धीरे धीरे मन की पीड़ा (suffering)का घाव व्याप्त होते हुए शरीर पर रोग – बीमारी के रूप में छलकने लगते है । जिसे हम मनोदैहिक समस्या कहते है ।
जितना हमारा भीतर मन खुश रहेता है, शरीर स्वयं को स्वस्थ बनाये रखने में सक्षम बना रहेता है । लेकिन समस्या यह है कि हर दिन खुश कैसे रहा जाए ? मन के भीतर की suffering से मुक्ति मिले तो कैसे मिले ?
Suffering से मुक्ति के लिए सिलो ने अपने पहले प्रवचन “The Healing Of Suffering” में एक सुंदर कहानी के रूप में कही है
यह एक प्रतीकात्मक कहानी है – एक यात्री था जो एक लम्बी यात्रा पर निकला था। उसने इस यात्रा में सुविधा के लिए अपने प्राणी को एक गाड़ी के साथ जोड़ा (समजने के लिये घोड़ा गाड़ी या बैल गाड़ी जैसा ) और वह उस एक लंबी यात्रा पर चल पड़ा ; उसकी मंजिल दूर थी और उसे यह मंजिल तक का प्रवास कुछनिश्चित समय के दरमियान तय करना ही था।
यहाँ पर जो यात्री है वह प्रतिक है हमारा स्वयं का …यात्रा हमारा जीवनकाल है। यहाँ पर प्राणी है वह प्रतिक है हमारी जरूरतों का ( जरूरतें जो जीवन जीने के लिए अनिवार्य है ) गाड़ी प्रतिक है हमारी “इच्छा , अभिलाषा, कामना desires ” का; गाड़ी है तो दो पहिये भी होंगे यहाँ एक पहिया सुख का और दूसरा पहिया दुःख का प्रतिक है।
यात्रा में यात्री कभी गाड़ी को दायें तो कभी बायें हर मोड़ को पार करता हुआ लगातार आगे बढ़ रहा है । गाड़ी जितनी गति से आगे बढ़ रही है वैसे ही सुख और दुःख दोनों ही पहिये एक ही गति के साथ घूमते रहते है क्योंकि वे दोनों ही पहिये गाड़ी के एक ही एक्सेल (axle )से जुड़े है।
यात्रा लंबी थी और कुछ समय के पश्च्यात यात्री प्रवास में उबने लगा । ( मन का स्वभाव ही ऊब जाना है – वह हमेशा कुछ नया खोजता रहता है। जब तक कुछ नया होता है, मन उसी में रम जाता है, लेकिन थोड़े समय बाद वही चीज उसे बोझिल लगने लगती है। उदाहरण के लिए, मान लीजिए हम लगातार 10 दिन दाल-चावल खाएं। हमारे शरीर का पाचन तंत्र इसे लेकर कोई शिकायत नहीं करेगा, पर मन बेचैन होने लगेगा – “क्या! 10 दिन से वही दाल-चावल? अब कुछ चटपटा या मीठा मिलना चाहिए!”और फिर मन में स्वाद बदलने की तीव्र इच्छा जग जाती है ; वैसे ही यात्री का मन भी उबने लगा इसलिए उसने अपनी गाड़ी को अपनी पसंद की अपनी इच्छा अनुसार वस्तुओं से सजाना शुरू किया । जैसे वह जिस जगह गाड़ी में बैठा था उस जगह रुई की गद्दी की जगह मलमल का मखमली गलीचा लगाया; कुछ समय बाद गाड़ी की साधारण छत जो केवल बारिश और धुप से बचने के लिए लगाईं गयी थी , उस छत की सुन्दरता बढ़ाने के लिए उसने गाड़ी की छत पर भारी सजावट कर दी , यात्रीने इस तरह गाड़ी को अपनी मनभावन कई वस्तुओं से सजाना शुरू किया।
जैसे जैसे यात्रीने अपनी गाड़ी को अपनी मनवांछित वस्तुओं से सजाना शुरू किया गाड़ी में वजन बढ़ने लगा अतः प्राणी के लिए अब गाड़ी को ढोना भारी हो गया। ढलान वाले रास्ते या ऊंचाई वाले रास्तों पर गाड़ी को ढोने में प्राणी को थकान होने लगी। जहाँ रास्ते की जमीन नरम या रेत वाली होती तब ख़ुशी के और पीड़ा के पहिये फंस जाते थे ;उस समय भी प्राणी के लिए गाड़ी ढ़ोना कठिन बन जाता था।
यात्रा अभी लंबी है और मंजिल दूर…लेकिन गाड़ी में बहुत सारी सजावट की वस्तुओं के कारण बोज बढ़ गया था । प्राणी की गाड़ी को ढ़ोने की क्षमता क्षीण होने लगी थी और गाड़ी की गति धीमी हो गयी थी। यात्री मंजिल तक पहुँच ने के लिए उत्सुक था। इसलिए एक रात को यात्रीने इन समस्याओं पर ध्यान देने का निश्चय किया, शांत मन से जब यात्रीने ध्यान लगाया । तब ध्यान के दौरान उसने अपने साथी प्राणी की हिनहिनाहट सुनाई दी । उस हिनहिनाहट में प्राणी की समस्या का तत्कालीन हल भी सुनाई दिया।
दुसरे दिन सुबह यात्यारा शुरू करने से पूर्व ही यात्री ने गाड़ी पर जो भी सजावट के बोज स्वरूपा भार था उसे हटा दिया । अब प्राणी स्फूर्ति में दिख रहा था । अब बोजा कम हो गया था , लेकिन इस दौरान समय बहुत ही व्यय हुआ था और जो समय व्यय हुआ था वह वापस लाना असंभव था । .
दूसरी शाम यात्रीने फिर ध्यान लगाया तब यात्री को एक अलग ही आयाम ध्यान में आया । किन्तु इस पर कार्य करना कुछ कठिन सा प्रतीत हो रहा था – क्योंकि अब यात्री को कुछ त्यागना था …
आगे क्या हुआ यात्री ने क्या त्यागने का निर्णय लिया अगले ब्लॉग में पढ़ते है …continue…