नमस्कार ,
मन की बात … आज मन की बात नहीं बल्कि मन के विश्वास की बात करने का अवसर मुझे ब्रह्मांड ने दिया है , हमारी एक ध्यान की साधिका अनु जी जो वनस्पति वास्तु में अद्भुत ज्ञान रखती है उन्होंने कहा कि इस दीवाली धनतेरस के दिन आप एक पौधा अपने घर में प्लांट करे जिसे लक्ष्मी तरु वह कहती है जो धन और समृद्धि को आकर्षित करता है और विशेष रूप से लक्ष्मी तरु को धनतेरस और दीपावली की पूजा में रखिए। मैंने अनु जी को हाँ कहा किन्तु साथ में मेरे मन में ऐसा विचार भी आया कि क्यों न हम हमारी सभी ध्यान साधिका को भी इस लक्ष्मी आकर्षित करते हुए पौधे का लाभ लेने के लिए आमंत्रित करे ?
अब मैंने अपने ग्रुप में अनु जी का यह प्रस्ताव प्रस्तुत किया और बहुत सारी साधिकाओं ने इस लक्ष्मी तरु को पूजा में रखने की इच्छा दर्शायी।अनु जी ने १००० बार लक्ष्मी तरु पर कनकधारा स्त्रोत्र करके अभिमंत्रित किया। लक्ष्मी तरु की गमले के साथ कीमत थी १५० रूपया किन्तु उस समय ईश्वर कृपा से मेरे मन में भी एक संकल्प जन्मा कि सभी साधिका अपने अपने लक्ष्मी तरु मेरे घर से न ले जाए, तब तक मैं भी प्रात काल लक्ष्मी बीज मन्त्र से लक्ष्मी तरु पर सकारात्मक मन्त्र उर्जा से उर्जित करती रहूंगी।
सभी साधिकाओं ने अपनी अपनी सुविधा से मेरे घर से लक्ष्मी तरु लेकर अपने अपने घर में बहुत उत्साह से स्थापित कर दिया, किन्तु एकाद सप्ताह बिता ही था कि मुझे फोन और मेसेज आने लगे कि गमले में कुछ भी फलित होता हुआ नज़र नहीं आ रहा।धीरे धीरे ऐसा लगा कि कुछ साधिका अपना धैर्य और विश्वास खो रही है…कुछ साधिकाएँ तो बिलकुल ही नकारात्मक हो गयी।धनतेरस और फिर दिवाली का पर्व आया किन्तु अभी भी गमले में कुछ भी अंकुरित होता हुआ नहीं दिख रहा था ।कुछ साधिकाओं ने उसे लक्ष्मी पूजा में रखने वाले इस पवित्र गमले को बंजर कहकर अपनी पूजा में भी नहीं रक्खा…कुछ साधिकाओं को लगा कि अनु जी ने “चिट” किया ।
समय समय से मैंने अपनी साधिकाओं को कहा कि धैर्य रक्खे किन्तु इस समय के दौरान मैंने एक वास्तविकता को पाया कि हर हाल में श्रद्धावान बने रहना किसी को सिखाया नहीं जा सकता । व्यक्ति भीतर से कभी कभी ईश्वर के प्रति भी सम्पूर्ण श्रद्धावान नहीं होता तो व्यक्ति और पौधों के लिए कैसे सम्पूर्ण श्रद्धा रख पाएगा ?
सभी को जीवन में जादू होता हुआ देखना है लेकिन जादू कहाँ है ? जादू और कहीं नहीं हमारे भीतर ही है । हमारे भीतर जादू को बनाए रखने के लिए हमें जादूगर बनना होगा।
लक्ष्मी जी की तस्वीर या समृद्धि आकर्षित करने का यह लक्ष्मी तरु सब कुछ मन को सकारात्मक बनाए रखने के साधन ही है यदि हम इतना नहीं समज पाएँ तो फिर हमने क्या जाना ? बात सिर्फ १५१ रुपये के गमले या पौधे की नहीं है…पुरे जीवन की है,जीवन की हर स्थिति और परिस्थिति की है, बात हमारे मन के हर पहलु की है…मन में चलते हुए हर विचार की है…प्रतिक्रिया से मन शांत नहीं होता बल्कि अधिक विचलित हो जाता है।
सकारात्मक होने का अर्थ है कि क्या हम विपरीत स्थिति में भी सकारात्मक रह पाते है…विपरीत स्थिति में भी हम सकारात्मक बने रहने के लिए हम कौनसा माध्यम खोज पाते है…
मेरे भी लक्ष्मी तरु के गमले में भी कोई बीज अंकुरित नहीं हुआ था लेकिन उस गमले को मैंने अपने घर में और पूजा में स्थापित किया था … मुझे पूर्ण विश्वास था कि इस गमले में जो बीज है उस बीज में से जो पौधा फलित होगा और जिसे कनकधारा स्त्रोत्र से अभिमंत्रित किया हो वह लक्ष्मी तरु सुवर्ण का ही होगा । हर दिन गमले की मिटटी में दबे हुए उस बीज को पानी देना, सूर्य प्रकाश में रखना और यह विश्वास करना कि मेरे इस गमले से पौधा नहीं बल्कि सुवर्ण का पौधा बाहर आएगा जो मेरे जीवन में समृद्धि लाएगा …
सवा साल की प्रतीक्षा के बाद वह पौधा उस विश्वास कि भूमि में से अंकुरित होकर बाहर निकला…मैंने जाना कि हमारे अधीर होने से सृष्टि अपने नियम नहीं बदलती …किन्तु स्थितियां एक दिन ज़रूर बदलती है यदि हम श्रद्धावान है …
मेरी दुनिया में सब कुछ अच्छा है …