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11th The Valid Action Principle of Detachment

The Principle of Detachment -It doesn’t matter which group you are in. What matters is that you understand you didn’t choose any group.यह मायने नहीं रखता कि आप किस समूह में हैं।जो मायने रखता है वह यह है कि आपने कोई समूह नहीं चुना है,यह समझना महत्वपूर्ण है।

आप कौन हैं, आपका जन्म ,नाम , उम्र, जाति, धर्म, आर्थिक स्थिति, पेशा, बुद्धिमत्ता, या राजनीतिक पार्टी के बारे में आपका मत कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं हैं।आपने अपना जन्म स्थान, आपके  परिवार की जाति संप्रदाय या परिवार की आर्थिक स्थिति – किसी का भी चयन (चुनाव)आपने नहीं किया । आप कहे सकते हैं कि आपने कुछ चुनाव किए , जैसे वकील बनना, या जीवन साथी का चुनाव लेकिन उन निर्णयों के पीछे के कारण आपने नहीं चुने। महत्वपूर्ण यह है कि हमें यह समझना चाहिए कि हमने अपनी स्थितियों का चुनाव नहीं किया। हमें यह स्वीकार करना होगा कि हमारी वर्तमान स्थिति या हमारी परिस्थितियाँ हमारी चुनी हुई नहीं हैं।

इसका सारांश यह है कि आप अपनी वर्तमान स्थिति में उन कारणों से हैं जिन्हें आपने चुना नहीं है। आपका रवैया, व्यवहार, विचार, और आदतें बचपन से मिले तर्क , परिवार और परिवेश के प्रभाव से बनी हैं।आपने इनमें से कुछ भी नहीं चुना है । महत्वपूर्ण यह है कि आप समझें कि आपने अपनी स्थिति, परिवार या टीम या ग्रुप या कुछ भी नहीं चुना है। यह सिद्धांत समझाता है कि आपने अपनी जीवन स्थितियों का चुनाव नहीं किया है, यही सच्चाई स्वीकारनी मुश्किल है।

क्या आपने अपने माता-पिता को चुना था ? क्या आपने किंडरगार्टन या स्कूल में या अपने शिक्षक का चयन किया ? क्या आपने अपने मित्रों का या भाइयों का चयन किया ? जब आप बच्चे थे, तब आपके पास निर्णय लेने की शक्ति नहीं थी, और समाज ने,परिवार ने आपको हरदिन हर समय लाखों आकृतियाँ, छबियाँ अनुभूतियों की भेजीं।आपका व्यक्तित्व भी एक प्लास्टर ऑफ़ पेरिस के ढांचें में जैसे मूर्तियाँ ढाली जाती है वैसे ही ढाला गया।

“बेटा, यह करो, बेटा वह मत करो!” चीजों की नकल करनेवाले जीव के रूप में, हमने अपने माता-पिता, परिवार और दोस्तों से हजारों चीजों की नकल की है। हमने फिल्में देखी हैं, टीवी देखा है, किताबें पढ़ी ,सोशल मीडिया देखी अखबार पढ़े – किताबों या फिल्मों के नायकों ने हम पर प्रभाव डाला है, ऐसे ही जीवन के अधिकांश वर्षों के लिए हम प्रभावित हुए हैं। हमारे स्कूल के शिक्षकों ने हमें अनजाने में प्रभावित किया; हमें लगा कि हम सीख रहे हैं।  

आंतरिक और बाहरी प्रभाव ने हममें भय उत्पन्न किया, हममें जरूरतें पैदा हुई, और इन जरूरतों ने भी हमें प्रभावित किया है। हमारा मस्तिष्क जानकारी प्राप्त करता हैं; यह सब प्राप्त डेटा हमारे अंदर एकत्रित होता है और यह एकत्रित डेटा हम पर एक गहरा प्रभाव निर्माण करता है और वह बनता है…हमारा चरित्र, स्वभाव और हमारे निर्णयों का कारण। अपितु हम यह कह सकते है कि प्रभाव हमारा स्वभाव बनता है ।  

करियर का चयन, जीवन साथी का चयन ये सब इसी से आए है। जब आप बच्चे थे, तब आपके पास निर्णय लेने की शक्ति नहीं थी। आपके परिवार और समाज ने आपको प्रभावित किया।इस प्रकार, हमारा जीवन बाहरी और आंतरिक प्रभावों के कारण ढलता है।आपने कुछ भी नहीं चुना है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपको परिस्थितियों या हालातों ने कहाँ रखा है।

इस सिद्धांत का अध्ययन करेंगे, तो यह अनुभव कर पाएंगे कि हमें कुछ भी बचाने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि कुछ भी हमारा नहीं है। हमारे विचार, सोचने के तरीके, जीवन को देखने के तरीके, इनमें से किसी को भी बचाने की ज़रूरत नहीं है।

उसी तरह हमें अन्य लोगों के तरीकों पर हमला करने की भी ज़रूरत नहीं है, क्योंकि उन्होंने भी अपने आज के रूप को नहीं चुना है। परिस्थितियों ने उन्हें वहाँ रखा है, जहाँ वे इस समय हैं। तो उन्हें आलोचना करने का क्या मतलब है? आपको जो मिला है उस पर गर्व करने का क्या मतलब है ? क्या आपने इसे स्वयं चुना है?

जिन लोगों को आप जानते हैं वे जो भी स्थिति में हैं , वे उन कारणों से हैं जो उनके द्वारा नियंत्रित नहीं थे, उनकी इच्छाओं से पूरी तरह अलग।

जैसे कोम्पुटर में डाटा फीड की गई है, हमने अपने अंदर बहुत सारा डेटा, भावनात्मक धारणा, विचार और सोच संग्रहित कर रखा है। हमें इस या उस तरीके से व्यवहार करने के लिए कहा गया है, और हम बस बार-बार वही निर्देश दोहरा रहे हैं।

हम मशीनें हैं – जो हमारे अंदर के डाटा को उनकी विभिन्न संयोजनों में पुनरावृत्ति करती रहती हैं। इसलिए खुद की या दूसरों की निंदा करना, निर्णय करना, आलोचना करना, गर्व करना, बिगड़ना , आत्म-चेतन होना, आत्म-केंद्रित होना, अहंकारी होना, यह मानना ​​कि हम बाकी से श्रेष्ठ है, या यह सोचना कि सभी हम से निम्नतर है, यह एक संप्रभु मूर्खता है।

यदि परिस्थितियों ने आपको एक उच्च स्थिति में रखा है, तो आप वास्तव में श्रेष्ठ नहीं हैं क्योंकि आपने श्रेष्ठ होने के लिए कुछ भी नहीं किया । शायद कोई अनुकूल परिस्थितियों में पैदा हुआ था, या शायद कम अनुकूल परिस्थितियों में। क्या किसी भी स्थिति को व्यक्ति की निंदा करने का कारण माना जा सकता है? क्या आपको लगता है कि आप इतने विशेष हैं कि आप किसी चीज़ पर घमंड या गर्व कर सकते हैं?

महाभारत का युद्ध पूरा हो चूका था , किसी कारणवश धनुर्धारी अर्जुन जंगल से अकेले यात्रा कर रहे थे और अचानक ही जंगल में कुछ लूटेरों ने उनको घेर लिया और लूट लिया ; धनुर्धारी अर्जुन जिसने अपने इसी गांडीव से कुरुक्षेत्र की रणभूमि में बड़े बड़े योद्धाओं को परस्त किया था आज उसी अर्जुन को सामान्य लुटेरों ने लूट लिया और अर्जुन से गांडीव भी छीन लिया यह कैसे संभव हुआ ? किन्तु यही हुआ – इसी लिए कहेते है कि – समय समय बलवान ;नहीं पुरुष बलवान ,काबे अर्जुन लूटिया ;वही धनुष वही बाण।समय से बलवान कोई नहीं है …समय अर्थात जीवन की परिस्थिति…व्यक्ति स्वयं में श्रेष्ठ नहीं है अनुकूल स्थिति उसे श्रेष्ठ स्थिति में रखती है वैसे ही व्यक्ति निम्न नहीं है उसकी परिस्थिति उसे निम्न स्तर पर रख देती है।

यदि प्रत्येक मनुष्य ने अपनी वर्तमान स्थिति, अपने तरीकों और जीवन को स्वयं तय नहीं किया है, बल्कि अलग किसी स्रोत से प्रेरणाएँ प्राप्त की हैं, तो समाज भी उसी स्थिति में होना चाहिए और दुनिया भी। इसका अर्थ है कि कोई भी राष्ट्र किसी दुसरे राष्ट्र से बेहतर नहीं है , अलग- अलग संप्रदाय ,जाति,जन्म,वर्ण,रंग ,लिंग,प्रदेश या कोई राष्ट्र को किसी ने स्वयं नहीं चुना, और  न ही किसी ने इनमें से किसी में शामिल होने का स्वयं फैसला किया।

दूसरों के कार्यों, व्यक्तित्व या स्थिति की आलोचना करना, उनके बारे में फैसला करना कि वे सही हैं या गलत, अच्छे हैं या बुरे। दूसरे लोगों के बारे में धारणा बनाना और उन पर अपने मूल्यांकन को थोपना ; कितना उचित रहेगा ? जब हम यह समज चुके है कि लोग उन कारणों से वहां हैं जो उनके नियंत्रण में नहीं थे।आप स्वयं को देखे – यदि आपका स्वभाव आपके ऊपर जो प्रभाव है उसी के कारण निर्माण हुआ है तो क्या प्रभाव बदल जाने पर ; स्वभाव भी बदल जाएगा ? संभवत हाँ , कई अद्भुत उदहारण है – जैसे वालिया लुटेरा ऋषि वाल्मीकि बन गया – पत्नी प्रेम में डूबा हुआ तुलसी – पत्नी के कहे कठोर सत्य वचन से तुलसीदास बन गया , प्रेमी की प्रतीक्षा करते करते गणिका पिंगला ने ज्ञान प्राप्त कर लिया – वारांगना पिंगला के प्रेम में विवश ब्राहमण ने पिंगला में ही गुरु पा लिया , रानी पिंगला के मोह में फंसे भर्तुहरी के साथ जब रानी पिंगला ने विश्वासघात किया और कामांध राजा भर्तुहरी वैरागी बना गया – ऐश्वर्य में जीवन जीनेवाले राजकुमार सिद्धार्थ ने जब रोग बुढ़ापा और मृत्यु इन जीवन के सत्यों को देखा तो सत्य खोजी तथागत बुद्ध बन गए , कलिंग के युद्ध में रक्तपात देखकर राजा अशोक ने अहिंसा और करुणा का मार्ग अपना लिया – प्रभाव बदलते ही स्वभाव भी बदलता है।

आपको स्वयं का विश्लेषण करना होगा! यदि आप अच्छे हैं, तो शायद आपके माता-पिता ने आपको अच्छा बनने के लिए प्रेरित किया; लेकिन यदि आप अच्छे नहीं हैं, तो इसका कारण यह नहीं है कि आपने ऐसा चाहा था। आपसे बचपन में यह अपेक्षा नहीं की गई थी कि आप किस तरह का जीवन जीना चाहते हैं-जब आप पैदा होने वाले थे, किसी ने आपसे नहीं पूछा कि आप अच्छाई या अज्ञानता, समझ या मूर्खता चाहते हैं।

यदि आपके माता-पिता ने आपको अच्छा बनने के लिए प्रेरित किया, आपके माता-पिता भी प्रभावित हुए थे, और जिन्होंने उन्हें प्रभावित किया वे भी दूसरों से प्रभावित थे। इसलिए इसको समझें कि आपने अपने जीवन के किसी भी हिस्से का चयन नहीं किया है, न ही आपकी ऊँचाई या त्वचा का रंग, या न ही आपके काम का प्रकार।

हम प्रभावों के गुलाम हैं, वे प्रभाव जिन्हें हम हर दिन अपनी पाँच इंद्रियों, मन और अपनी भावनाओं के माध्यम से ग्रहण करते हैं। क्या आपको मकई पसंद है? क्यों ? क्यों आपको ब्रोकोली पसंद नहीं है ? क्यों- आपको कुछ चीजें पसंद हैं और कुछ नहीं – यह तर्कसंगत नहीं है, वास्तव में हमें पूछना चाहिए कि वो क्या प्रभाव/कारण हैं जिससे कुछ चीजें हम पसंद करते हैं और कुछ नहीं – आप कुछ चीजें क्यों करते हैं और कुछ नहीं? क्या हमें प्रोग्राम किया गया है ?

अब महत्वपूर्ण बात यह है कि आप इस स्थिति से मुक्त होने के बारे में सोचना शुरू करें। एक व्यक्ति अपने जीवन के लिए निर्णय लेना कैसे शुरू कर सकता है? यदि आपने ग्यारहवें सिद्धांत में निहित सच्चाई को समझ लिया है कि आपके साथ जो कुछ हुआ, आपने उसे नहीं चुना , आप आज कहाँ हैं ? या किस स्थिति में हैं ? यदि आप अब इसे स्वीकार करते हैं, तो आप स्वतंत्र इच्छा के लिए एक उम्मीदवार हैं।

आप यह समझने के लिए तैयार है कि आप अपनी उन सभी चीजों से कैसे मुक्त हो सकते हैं जो आपकी नहीं हैं, और अपनी स्वयं की राह बनाना शुरू कर सकते हैं। लेकिन यह आवश्यक है कि आप पहले यह जान लें कि आपने कभी कुछ भी नहीं चुना है, आपको इसे समझना और स्वीकार करना होगा। ऐसा करना एक लंबी कार्य प्रक्रिया है। लेकिन, यह आवश्यक है!*

ऐसे हालात में हमारे सामने कुछ विकल्प होते हैं। पहला, उन सब चीजों से असंतुष्ट होना और यह इच्छा करते रहना कि “काश” हम किसी और परिवार में पैदा हुए होते , किसी और तरह से मेरी परवरिश हुई होती, किसी और तरह की शिक्षा मिली होती, तो यह कितनी अच्छी स्थिति होती। जो कुछ मेरे पास है और जो मैं हूं उससे असंतुष्ट रह कर जीवन को ढोते रहेना।

दूसरा विकल्प – इस प्रक्रिया में, आप स्थितियों के सकारात्मक पहलुओं या भिन्न पहलु को देखे स्वीकार करे – This is It – अब आगे क्या करना है ? कदाचित यह आपका स्वयं का चुनाव हो सकता है।और यह भी हो सकता है कि नया चुनाव जो आप अब करेंगे वह भी किसी प्रभाव का ही प्रतिभाव हो किन्तु अब जो भी चुनाव आप के द्वारा होगा उसके प्रति आप सजग होंगे …हो सकता है आप उस प्रभाव को देख भी पाए ; जिस के तहत आपने स्वयं नए जीवन का या नए मार्ग का चयन किया है ।और हो सकता है कि उस विशेष चुनाव के लिए आप स्वेच्छा और सजगता अनुभव कर पाए ।   

Kalindi Mehta

कालिंदी महेता की योग यात्रा के प्रारंभ में – “मन की बातें

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