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12th Principle – The Principle of Transmutation and Accumulation of Actions

The Principle of Transmutation (रूपांतर) – The Principle of Accumulation ( संचय ) of Actions – Contradictory or unifying actions accumulate within you. If you repeat your acts of internal unity, nothing can detain you.

“आपके भीतर विरोधाभासी या एकीकृत (एकता) स्थापित करने वाली क्रियाएं इकट्ठा होती हैं। यदि आप अपनी आंतरिक एकता के कार्यों को दोहराते हैं, तो कुछ भी आपको रोक नहीं सकता”

आपके अंदर दो तरह की चीज़ें होती हैं:कुछ चीज़ें आपको उलझन में डालती हैं और कुछ आपको एकजुट करती हैं। अगर आप अपने मन में शांति और एकता लाने वाले काम बार-बार करते रहेंगे, तो कोई भी बाधा आपको आगे बढ़ने से नहीं रोक पाएगी।

उदाहरण: एक छात्र हैं और पढ़ाई में अच्छे नंबर लाना चाहते हैं। लेकिन दोस्तों के साथ समय बिताने और मौज-मस्ती करने में उलझ जाता हैं, जिससे पढ़ाई में बाधा आती है। यह आपकी विरोधाभासी क्रियाएं हैं। वहीं, जब वह नियमित रूप से पढ़ाई करता हैं, समय पर सोना , उचित भोजन करना यह आपके एकजुट करने वाले कार्य हैं। अगर आप इन एकजुट करने वाले कार्यों को बार-बार करते रहेंगे, तो पढ़ाई में कोई भी बाधा नहीं आएगी।

“आपके भीतर विरोधाभासी या एकीकृत करने वाले कार्य इकट्ठा होते हैं। यदि आप अपनी आंतरिक एकता के कार्यों को दोहराते हैं, तो आप एक प्राकृतिक शक्ति की तरह होंगे, फिर आपको आंतरिक मुक्ति प्राप्त करने से कोई रोक नहीं सकता। आप जीवन में किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं

यदि आप विरोधाभासी कार्यों को दोहराते हैं, तो आप ईश्वर/ब्रह्मांडीय उर्जा से दूर रहेंगे ; किन्तु विरोधाभासी कार्य क्या है?

जब आपको कुछ करने की इच्छा होती है, लेकिन आपको पता है कि वह आपको नहीं करना चाहिए, और फिर भी आप उसे कर लेते हैं। इस तरह के कार्य आपके अंदर जमा हो जाते हैं और आपको पीछे की ओर धकेलते हैं, जिससे आप अपने विकास की दिशा में आगे बढ़ने के बजाय पीछे की ओर जाते हैं। उदाहरण:आपको पता है कि आपको स्वास्थ्य के लिए सुबह में योग करनी चाहिए, लेकिन आप सुबह सोते रहेते है। यह एक विरोधाभासी कार्य है। इस तरह के कार्य आपके अंदर जमा होते जाते हैं और आपको विपरीत दिशा में ले जाते हैं।

विरोधाभासी कार्य – (* इन सभी के उदहारण सत्र में चर्चा कीजिये)

१-जब आपकी इच्छा किसी कार्य को करने की है किन्तु आपके लिए वह कार्य करना उचित नहीं होता – फिर भी आप करते है।*

२- जब आपकी इच्छा किसी कार्य को करने की है किन्तु आपके लिए वह कार्य करना नैतिक नहीं होगा -फिर भी आप करते है।*

३- जब आपकी इच्छा किसी कार्य को करने की है किन्तु आपको वह कार्य किसी विवशता के कारण नहीं करते।*

४- आपकी इच्छा किसी कार्य को करने की नहीं है किन्तु किसी कारणवश(लालच मोह स्वार्थ) वह कार्य करते है।*

५- जब आपकी इच्छा किसी कार्य को करने की नहीं है किन्तु आप किसी भी विवशता के वश वह कार्य करते है।*

एकीकृत कार्य क्या है ? जब आप जानते हैं कि आपको वह कार्य करना चाहिए और आप उसे करते हैं, भले ही आपके भावनाएं या शरीर आपको समर्थन न दें। यह आपके अंदर एक सकारात्मक ऊर्जा जमा करता है ।

१- आपकी भावनाएं या शरीर आपको समर्थन न दें – फिर भी आपको लगता है कि वह कार्य करना चाहिए और आप उसे करते भी हैं, उदहारण-हमारे पडोसी के साथ हमारा रिश्ता ठीक नहीं है किन्तु कल पता चला कि वह बीमार है और आपको लगता है कि उनकी सहायता करनी चाहिए ,भले ही सम्बन्ध ठीक न हो फिर भी समय निकालकर आप उनकी सहायता की यह एकीकृत कार्य है। 

२-आपको कुछ कार्य नहीं करने चाहिए और आप उसे नहीं करते हैं- उदाहरण – कोई व्यक्ति आपको कोई रिश्वत दे रहा है और चाहता है कि आप उसका कुछ काम कर दे।

3-कोई व्यक्ति मर जाता है और उसके कुछ रुपये आपको उसे देना बाकी थे किन्तु उसके मरने के बाद उसके परिवार को यह पता नहीं है कि आपसे मृतक को पैसे लेने बाकी थे , आप चाहे तो उस पैसों को नहीं लौटाए क्योंकि मृतक के परिवार को या किसी को इस लेनदेन का पता ही नहीं है किन्तु आप मृतक के परिवार को वह पैसा लौटाते है  

हर विरोधाभासी कार्य एक बोझ की तरह होता है जो आपको नीचे की ओर खींचता है।वहीं, हर एकीकृत कार्य एक सकारात्मक ऊर्जा जमा करता है जो आपको आगे बढ़ने में मदद करता है। यह ऊर्जा आपको आपके मूल स्वरूप और सृष्टिकर्ता के समीप लाने में मदद करती है।

हम सभी के भीतर दो तरह की ऊर्जा जमा होती है : सकारात्मक और नकारात्मक।

जैसे आप बेंक में खाते में रुपये जमा करते है वैसे ही आपके पास भी ये दो जमा खाते है। कुछ लोगों के पास सकारात्मक शक्ति के खाते में अधिक जमा होता है। कुछ ने अपने नकारात्मक जमा को बढ़ाया है; वे निराशावादी, उदासी से भरे हुए होते हैं, न तो खुद पर विश्वास करते हैं और न ही दूसरों पर, न ही दुनिया पर, न ही विकास पर। ये लोग अपनी निम्न प्रवृत्तियों, लालच, यौन अनियमितता, निष्क्रियता, आलस्य और जड़ता,स्वच्छता की कमी, घमंड, क्रोध, हिंसा, अहंकार, के प्रति ध्यान देते हैं। वे सभी कारण देखते हैं कि विकास क्यों संभव नहीं है। जिस भी गतिविधि में वे संलग्न होते हैं, वह गलत साबित होती है; किसी भी चीज़ का प्रयास करने पर वह विफल हो जाता है; उनका इतिहास विरोधाभासी कार्यों से भरा होता है; जो कुछ वे करना चाहते हैं, वे नहीं कर सकते क्योंकि उनके एकीकृत कार्यों का खाता खाली है; वे अपने छोटे से संसार, समाज और अंधकार के गुलाम होते हैं।

जिनके एकीकृत कार्यों का खाता ऊर्जा से भरा होता है वे मुस्कुराते हैं, आशावादी होते हैं, खुश रहते हैं। हालांकि उनकी नजरों में एक विशेष उदासी होती है ,वे अपने जीवन को संतुलित करने और अपने प्रवृत्तियों को प्रकाश की ओर ले जाने का प्रयास करते हैं। वे हमेशा खुश नहीं होते लेकिन आप उनमें आत्मविश्वास देख सकते हैं। उनके पास बहुत ठोस विचार होते हैं; उन्हें ठीक-ठीक पता होता है कि उन्हें क्या करना है और क्यों ? उनका दूसरों में विश्वास होता है, ईश्वर और मानवता में विश्वास होता है। वे जो कुछ भी करते हैं, उसका आनंद लेते हैं; वे दूसरों की मदद करते हैं, दूसरों को विकास के लिए प्रेरित करते हैं। वे हमेशा चीजों के संतुलित पक्ष को देखते हैं । हम सभी दोनों पक्षों से कुछ न कुछ सीखते हैं; संघर्ष बड़ा है; प्रयास बड़ा है।

जब व्यक्ति अपने कर्तव्यों को समझता है और उन्हें निभाने की कोशिश करता है, भले ही उसकी भावनाएं और शरीर इसका समर्थन न करें।

उदाहरण-परिवार का कोई सदस्य हमें पसंद नहीं करता किन्तु यदि वह सदस्य किसी आपत्ति में हो तो हम उसकी मदद करने से खुद को रोक नहीं पाते ,परिवार की मदद करना हमारा कर्तव्य है। एकीकृत कार्य तब होते हैं जब व्यक्ति अपनी अंतर आत्मा से मार्गदर्शन प्राप्त करता है

“एकीकृत कार्य” का अर्थ एक ऐसा कार्य है जिसमें किसी व्यक्ति के मन, भावनाएं विचार और शरीर ( Think Feel and Act in The Same Direction ) सभी एक ही दिशा में कार्यरत होते हैं और सामंजस्यपूर्ण कार्य करते हैं। यह कार्य व्यक्ति को अन्य लोगों, परिवार, समाज, और प्रकृति के साथ एकता में लाता है और उन्हें उनके कर्तव्यों की पूर्ति में सहायक होता है। एकीकृत कार्य वह होता है जो न्याय , नैतिकता और सत्य पर आधारित हो, किसी को नुकसान न पहुंचाए, और सभी के लिए लाभकारी हो । यह कार्य व्यक्ति की आंतरिक शांति और विकास को बढ़ावा देता है और उन्हें सृष्टिकर्ता से जोड़ता है।

विपश्यना के सत्रों के दौरान – मंगल मैत्री करवाई जाती है – मंगल मैत्री;समग्र सृष्टि के साथ।

तेरा मंगल तेरा मंगल तेरा मंगल होय रे

सबका मंगल सबका मंगल सबका मंगल होय रे 

द्रश्य और अद्रश्य सभी जीवों का मंगल होय रे

जल के थल के और गगन के प्राणी सुखिया होय रे

निर्भय बने निर्वैर बने सब सभी निरामय होय रे

दसों दिशाओं के सब प्राणी मंगल लाभी होय रे

जन जन मंगल, जन जन मंगल ; जन जन सुखिया होय रे

आपको स्वयं का विश्लेषण करना होगा , आत्मनिरीक्षण करना होगा और तय करना होगा कि आपको आगे बढ़ना है या नहीं। एकीकृत करने वाली क्रियाओं का जीवन में अमलीकरण करे ताकि आप जीवन में शांति और विकास प्राप्त कर सकें।

संसार में अधिकतर लोग अपने ही चक्रव्यूह में “कैद” हैं और उन्हें पता भी नहीं है कि वे कैदी हैं। वे अपनी मुक्ति का रहस्य नहीं जानते और कदाचित जानना भी नहीं चाहते। यदि आपने इस संदेश के पहले हिस्से को ध्यान से समझा है कि एकीकृत करनेवाला कार्य कैसे मुक्ति की ओर ले जाता है और विरोधाभासी कार्य कैसे आपको अंधकार में डुबोता है, तो आप मुक्ति के समीप हैं। हर दिन एक एकीकृत करने वाला कार्य सचेत रूप से करें। यह आपकी मुक्ति की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

एक एकीकृत कार्य तब होता है जब पाँच रहस्यों का संक्षिप्त सार का अभ्यास करेंगे –

१ सचेत कार्य: अपनी आदतों का अवलोकन करो – विरोधाभासी आदतों को देखो और  एकीकृत आदतें विकसित करो।

२ अनासक्त कार्य: सात लोगों को चुनकर उनके एकीकृत कार्यों को पूरा करने में सहायता करो।

३ सचेत प्रार्थना: बिना किसी अपेक्षा के, अपने निर्माता से स्वस्थ संवाद करो और दूसरों को भी प्रार्थना करना सिखाओ।

४ कृतज्ञता: हर एकीकृत कार्य के बाद, अपने निर्माता का आभार व्यक्त करो।

५ विश्वास और संतुलन: कठिनाइयों में, अपने निर्माता से विश्वास और एकीकृत कार्यों को करने के लिए सबलता और सहायता मांगो

यदि बारह सिद्धांतों का अध्ययन करने के बाद , आपको लगता है कि आप उन्हें नहीं समझ पा रहे हैं, कोई बात नहीं आपने अपना सर्वोत्तम प्रयास किया है। यदि इन १२ सिद्धांतों का पालन करते है , तो सभी एकीकृत कार्य करने की शक्ति मिलेगी।

जो लोग उनकी “कैद” वाली दुनिया में खुश हैं, उन्हें जैसा वे हैं वैसा ही रहने दो; उन्हें आपके  इस कार्य के बारे में बात मत करो , आपको तब तक प्रतीक्षा करनी होगी जब तक वे इसे अनुभव न करें और स्वयं जाग न जाएं। तब तक उन लोगों से बात करो जो जागरूक हैं।

मुक्ति का सिद्धांत कहेता है कि तुम पहले से ही वह सब जानते हो जो जानने की आवश्यकता है, (आपको पहले से ही वह ज्ञान है जो जानने की आवश्यकता है ) लेकिन तुम क्या चाहते हो यह इस पर निर्भर करता है कि तुम कितना काम करने को तैयार हो। संदेह को अपने ऊपर हावी मत होने दो। समाज, मानवता, और परिवार को मजबूत इरादा, स्पष्ट विचार , शांत मन , जागरूकता, संतुलित भावना , शक्ति और स्वस्थ शरीर के साथ आपकी ज़रूरत है।

कभी कभी लगता है कि यह सब सिद्धांत यदि हमने पहेले सीखे होते या काश कोई सिखने वाला मिल गया होता तो जीवन कुछ और आयाम पर होता किन्तु यह भी सच है कि जब हम सिखने योग्य और सिखने के लिए तैयार होते है तभी हमें कोई सीखनेवाला मिलता है – जब हम प्राप्त करने की पात्रता के योग्य हो जाते है तब हमें गुरु मिलता है – परिपक्वता जिस दिन हमारे भीतर विकसित हो जाती है तभी ज्ञान उपलब्ध हो जाता है – सब कुछ उपलब्ध ही था केवल हमारी पात्रता की प्रतीक्षा थी।

यह आपका अवसर है। सृष्टिकर्ता आपको आशीर्वाद दे ,आपकी देखभाल करे, और आपके मार्ग को प्रकाशमय करे । धन्यवाद!

Kalindi Mehta

कालिंदी महेता की योग यात्रा के प्रारंभ में – “मन की बातें

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