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4th  The Principle of Proportion-

“Things are well when they move together, not in isolation”

“चीजें अच्छी होती हैं जब वे साथ में चलती हैं, न कि अलग-अलग “

यह सिद्धांत ratio (अनुपात) प्रपोर्शन का है – यह सिद्धांत कहेता है कि जब हम अपने किसी लक्ष्य की प्राप्ति की दिशा में प्रयास करते हैं , तो हमें अपने जीवन के अन्य पहलुओं को उपेक्षित नहीं करना चाहिए । जब हम अपने जीवन के सभी पहलुओं को साथ में लेकर आगे बढ़ते हैं , तो हमारी “संभावनाएँ” अधिक सकारात्मक होती हैं।

यदि हम अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अपने जीवन के भिन्न भिन्न पहलुओं को या दायित्व को न्यायसंगत अनुपात में नहीं रखते, तो हमें परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे संजोग में यदि हम लक्ष्य तक पहुँचते भी हैं, तो भी हमारे लिए उसका परिणाम इतना सुंदर नहीं भी हो सकता , क्योंकि हमने अपने जीवन के अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं का अनदेखा किया है।

उदाहरण – यदि हम धन या प्रतिष्ठा या किसी भी लक्ष्य को (भले ही लक्ष्य कितना भी उत्तम क्यों न हो) प्राप्त करने के लिए अपने प्रियजनों का या परिवारजन का त्याग करते हैं, अपने स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाते हैं, या अन्य कर्तव्यों को उपेक्षित करते हैं, तो हो सकता है हम धन, प्रतिष्ठा या लक्ष्य प्राप्त ले किन्तु सफलता का आनंद लेने के लिए अच्छे स्वास्थ्य और अपनों की कमी अनुभव होगी । क्योंकि असली मज़ा सबके साथ आता है।

“चीजें अच्छी होती हैं जब वे साथ में चलती हैं। “साथ चलना”का अर्थ यह नहीं है कि सभी गतिविधियों को एक समान समय या ऊर्जा दी जाए। बल्कि प्राथमिकताओं के अनुसार “साथ में लेकर चलना” यह कहने का तात्पर्य है। प्रत्येक गतिविधि , परिवार , मित्र , आध्यात्म , व्यापार आदि सभी को उनकी प्राथमिकताओं के आधार पर ध्यान मिलना  आवश्यक है।

कभी कभी कुछ चीजें या कार्य या कोई रिश्ता तुलनात्मक रूप से अधिक महत्वपूर्ण हैं, तो हमें उनके महत्त्व के अनुरूप महत्त्व देना चाहिए , अगर प्राथमिकता के अनुसार ऊर्जा लगाई जाती है, तो हर चीज वास्तव में सरलता से काम करेगी। (प्राथमिकता और प्राधान्य आपके निजी व्याख्या के दायरे में होते है* )

“चीजें अच्छी होती हैं जब वे साथ में चलती हैं, न कि अलग-अलग” इसे साझेदारी का या टीम वर्क का सिद्धांत भी कह सकते है , होकी या फुटबॉल जैसे  खेल में विभिन्न खिलाड़ी खेल में भिन्न भिन्न कार्य भार सम्हालते हैं, लेकिन वे सभी एक ही उद्देश्य के लिए साथ मिलकर काम करते हैं। वैसे ही परिवार में भी सभी सदस्य अपने अपने दायित्व को निष्ठां से निभाते है ताकि परिवार समृद्ध बना रहे।वाजिंत्रों के उचित रेश्यो होने पर ही मधुर संगीत की धुन बनती है। चित्र में भी कलाकार रेश्यो से रंग भरते है। भोजन में रेश्यो के अनुपात से ही मसाले डाले जाते है।    

हमारे शरीर में, हमारे जीवन और आस-पास की दुनिया में हम देख सकते हैं कि चीजों के बीच एक संबंध और एक अनुपात होता है।हमारे शरीर में विभिन्न अंग होते हैं और वे एक दूसरे के साथ सुंदर समन्वय में काम करते हैं। श्वशन क्रिया , रक्त संचारण, भोजन पचन और यहाँ तक कि मल का निस्तारण भी। सभी प्रक्रियाएँ शरीर के विभिन्न अंगों द्वारा अद्भुत सामंजस्य से की जाती हैं। हाथ की उंगलियां सामूहिक रूप से काम करती हैं, प्रत्येक उंगली एक ख़ास गतिविधि में भाग लेती हैं प्रत्येक ऊँगली का आकार भिन्न है फिर भी उनका महत्त्व समान है ।

शरीर में समन्वय ,सामंजस्य और अनुपात का महत्व देखा जा सकता है – शरीर एक उत्तम उदाहरण है। जीवन में पारिवारिक , व्यावहारिक , भावनात्मक और सोशल लाइफ जैसे कई अन्य क्षेत्रों में भी सामंजस्य और अनुपात महत्वपूर्ण है।

यह सिद्धांत यह कहता है कि कोई भी वस्तु या व्यक्ति अकेले विकसित नहीं होती, बल्कि इसके आस-पास के तत्वों के साथ गतिशील संबंध में होती है। जैसे पौधे – मिट्टी, पानी, सूरज की रोशनी पर आधारित है , जैसे पशु – जल, वायु , दूसरे जानवरों और पौधों के साथ पर्यावरणीय स्थितियों पर निर्भर करता है ।मनुष्य का जीवन भी अन्य मनुष्यों, जानवरों, और प्रकृति पर निर्भर एवं समबंधित है।

कुछ उदाहरण – समाज भिन्न भिन्न प्रकार और विभिन्न प्रकृतिवाले लोगों से बना है जो अलग अलग कार्यों और ज़िम्मेदारियों का पालन करते हैं।

वर्ण व्यवस्था – चार वर्ण का उल्लेख भगवद गीता में भगवान् कृष्ण ने किया है – (ब्राह्मण, वैश्य,क्षत्रिय और शुद्र।  १)ब्राह्मण जिसे ज्ञान है ,जो समाज को उत्तम मार्गदर्शन समाजकल्याण के लिए देता है – २) वैश्य जो व्यापार करता है , जिस कारण समाज का सर्वांग विकास होता है – आर्थिक व्यवस्था बनी रहती है और समाज के सभी वर्गों की आजीविका का स्त्रोत्र उत्पन होता है ३) क्षत्रिय – समाज की सुरक्षा करना समाज में सुरक्षा होगी तो विकास कार्य सरल बन जाते है और ४) शुद्र – समाज में सेवा का योगदान देता है जिससे समाज के अन्य कार्य और व्यवस्था का सरलतापूर्वक वहन हो सके।

आश्रम व्यवस्था – ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ , संन्यास

समाज में स्त्री/पुरुष का रेश्यो

वय के रेश्यो में देश की जनसँख्या

आय के अनुरूप – खर्च ,बचत और निवेश  

आहार, विहार,निद्रा, और व्यायाम इत्यादि में भी प्रपोर्शन महत्त्व का है

मानव जीवन का एक बहुत ही रोचक पहलु भी जांचना चाहिए – हमारे जीवन में समस्याएं क्यों होती हैं ? हम क्यों बहुत प्रयत्नों के बाद भी चीजें सही नहीं कर पाते ? आखिर क्यों ? इन सवालों को एक से अधिक बार स्वयं से पूछा है। उनके कई कारण हो सकते हैं, फिर भी, एक कारण यह भी है कि हम प्रपोर्शन के सिद्धांत का अनुसरण नहीं कर पाते ।

अनुपात या प्रपोर्शन का सिद्धांत हमें कैसे अनुरूप जीवन दे सकता है ?  

रोल/भूमिका –जीवन में हम कई रोल निभाते है – यदि रोल ठीक से निभाया जाए तो जीवन में सामंजस्य बना रहता है लेकिन उसके लिए रोल को ठीक से समजना होगा – जैसे उदहारण के लिए – स्त्री का रोल क्या हो सकता है ? परिवार के स्तर पर या समाज के स्तर पर या राष्ट्र के स्तर पर या अन्य ? जीवन में कई रोल है क्या आप बता सकते है ?

( * अपने जीवन में देखे आपकी भूमिका कितनी सामंजस्य पूर्ण है ?)

” इस सिद्धांत के विरुद्ध भी कुछ उदहारण जाते हैं ।”

अक्सर हमारा जीवन के प्रति व्यक्तिगत दृष्टिकोण है। अक्सर हम केवल अपने बारे में , अपने पैसे, संपत्ति, छवि आदि की चिंता करते हैं। इसलिए हम समाज के सामान्य हितों से अलग रहते हैं।”(हम सब कभी न कभी कुछ ऐसा करते ही है – हम कब ऐसा करते है? और क्यों ऐसा करते है ?)

कुछ लोग परिवार के लिए , समाज के लिए , व्यापार के लिए , आध्यात्म के लिए कार्य करते है किन्तु वे जीवन के दुसरे पहलुओं की उपेक्षा करते है – वे यह कारण देते है कि समाज और आध्यात्म के लिए या व्यापार और परिवार के लिए मेरा जीवन मैंने समर्पित कर दिया है – यह कारण कितना उचित ठहराया जाए ? ( *हमारे जीवन में हम कहाँ इस सिद्धांत का असंतुलित अनुपात देख पाते है ?)

हमने कई बार आंतरिक विरोध की स्थिति का सामना भी किया है, हमारा व्यक्तित्व कैसा होना चाहिए ? व्यक्तिगत विकास के लिए भी अपनी भूमिका को समजना आवश्यक है – यदि हमारे व्यक्तित्व का सर्वांग विकास विशेष रूप से भावनात्मक स्तर पर परिपक्वता का विकास उचित अनुपात/रेश्यो के अनुरूप नहीं हुआ है तो संघर्ष का सामना होता ही है। 

उदहारण के रूप में अति गुस्सा करना या अति प्रेम जताना अति जिद्द या अति दया- या फिर अति स्वार्थी होना या अति समर्पित होना – यह सभी व्यक्तित्व के भावनात्मक पहलु है जहाँ एक रेश्यो की आवश्यकता है ।

(* स्वयं के आंतरिक जगत में भावनात्मक प्रपोर्शन का अभ्यास करे )

दैनिक जीवन में ऐसी स्थितियाँ जहाँ सिद्धांत लागू किया जा सकता है।

उदाहरण के लिए, एक कारोबारी अधिक धन कमाने के लिए या कोई सामाज सुधारक समाज के उत्थान के लिए या प्रतिष्ठा के लिए अपने परिवार और स्वास्थ्य पर पर्याप्त ध्यान नहीं देता , या शारीरिक गतिविधियों को और व्यायाम छोड़कर अपने स्वास्थ्य की उपेक्षा करता है। इस तरह , वह जीवन का उद्देश्य गलत समझता है, जीवन के सभी पहलुओं को महत्व नहीं देता है। अंततः जीवन संघर्षमय बन जाता है

परिवार में भी कुछ सदस्य कुटुंब के लिए सबकुछ करते है और कुछ पेरासाईट होते है। परिवार में कुछ लोगों को अधिक महत्त्व दिया जाता है , उनको विशेष सुविधाएं दी जाती है और कुछ लोगो के योगदान को उपेक्षित किया जाता है  

कोई मनुष्य, चाहे कितना ही कुशल या बुद्धिमान क्यों ना हो , संतुलन, सामंजस्य ,समन्वय को हासिल करने में कभी सफल नहीं हो सकेगा, जब तक वह उन आशीर्वादित सिद्धांत का अनुपालन न करे। स्वामी विवेकानंद ने कहा है, “विविधता में एकता ब्रह्मांड की योजना है”।

“सबका साथ सबका विकास” यह मन्त्र है – यही मन्त्र हमारे इस ब्रह्मांड के , दुनिया के, राष्ट्र के , समाज के और परिवार के सर्वांग विकास की कुंजी है। 

यह व्यवहार का सिद्धांत यदि हम अपने जीवन में अमल करते है तो जीवन में विकास होगा और यदि इस सिद्धांत को नज़र अंदाज़ करते है तो संघर्ष का सामना हो सकता है – यह केवल हमारा द्रष्टिकोण है आप इससे सहमत हो ऐसा कोई आग्रह नहीं है

Kalindi Mehta

कालिंदी महेता की योग यात्रा के प्रारंभ में – “मन की बातें

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