स्वीकार का जादू – “If day and night, summer and winter are well with you, you have overcome your contradictions” “यदि दिन और रात, गर्मी और सर्दी आपके साथ सहज अनुकूल हैं , तो आपने विरोधाभासों को पार कर लिया है।”
यह सिद्धांत प्रतीकात्मक रूप में उन स्थितियों से संबंधित है जहाँ विरोधाभास होते हैं। विरोधाभास क्या है ? जब आपका मन जानता है कि कुछ करना चाहिए, और आपकी भावनाएं वह काम करने के लिए हिचकिचाएगी – यह एक विरोधाभास है।जब आपको कुछ करने का मन होता है, लेकिन आपका मन जानता है कि आपको उसे नहीं करना चाहिए – यह संघर्ष एक विरोधाभास है। विरोधाभास एक प्रकार से आंतरिक द्वंद्व है
हमारा जीवन द्वंद के नियम के तहत है। हर चीज दो हिस्सों में बनी है। अच्छा-बुरा ,गर्मी-ठंडी, भूख-तृप्ति, सच-झूठ, सही-गलत का चयन करना, वास्तविकता-कल्पना, इत्यादि।हमारा पूरा जीवन इन द्वंद्वों से बना होता है।
जब किसी कठिन स्थिति का सामना किया जाता है, तो लोग अक्सर विभिन्न भावनाओं का या द्वंद्वों का अनुभव करते हैं। हम उन चीजों से, व्यक्तियों से, स्थितियों से दूर भागते है जो हमें नापसंद है, हम केवल उन चीजों का या स्थितियों का चयन करते हैं जो हमें पसंद हैं हम उन स्थितियों से दूर भागते हैं जिनसे हमें भय है, जो दुखदायक हैं, इसका एकमात्र परिणाम यह होगा कि हम और और और ऐसी ही चीजों में पीछे जाएंगे जो हमें पसंद हो । क्या यह विरोधाभासी नहीं है ? *इसके बारे में विचार करे…हम पायेंगे कि इस प्रकार का व्यवहार हमारे विकास को बाधित करता है ।
सिद्धांत कहेता है-यदि आप अपने दैनिक जीवन के अनुभवों में उद्भव होते हुए द्वंद्वों को संतुलित कर सकते हैं , तो आप अपने विरोधाभासों को परास्त कर सकते हैं और आंतरिक मुक्तता प्राप्त कर सकते है।जब कोई व्यक्ति अपने विरोधाभासों को परास्त करने में असमर्थ रहता है, तो वह व्यक्ति अपने शरीर, मन, भावनाएँ और एक सामान्य जीवन में भी विचलित बना रहेता है।
हमें विरोधाभासों को क्यों परास्त करना चाहिए ? क्योंकि जो व्यक्ति विरोधाभासों से भरा होता है, वह जीवन की विरोधाभासी स्थितियों में संतुलित नहीं हो पाता , वह जीवन में पीछे जा रहा है, या कम से कम अपने जीवन में आगे नहीं बढ़ रहा है। वह व्यक्ति एक निराशावादी चक्र में फंसा रहे जाता है।
क्या इस चक्रव्यूह को भेदने की कोई संभावना है ?
जी हाँ संभावना है – यदि कोई व्यक्ति किसी स्थिति या समस्या के बारे में अपना दृष्टिकोण बदलता है तो ऐसे विरोधाभासों का समाधान किया जा सकता है।
अक्सर जब गर्मी अत्याधिक होने लगती है तब हमें सर्दी की ठंड की याद आती है, और फिर सर्दी की अत्याधिक ठंड हमें गर्मी की याद दिलाती है। लेकिन ऋतुएँ तो अपने ऋतुचक्र अनुसार कार्य करती है आपकी ऋतुओं को लेकर जो भी व्याकुलता है वे हमारा आंतरिक विरोधाभास है। सिद्धांत कहेता है कि यदि हम रात और दिन या गर्मी और ठंडी सभी स्थिति के साथ सहज है तो फिर जान लीजिए कि हम अपने आंतरिक विरोधाभास से बाहर निकल गए है।
दिन रात में बदल जाता है और रात दिन में बदल जाती है। यदि हम कहे कि मुझे तो दिन पसंद है,दिन के समय में एक जोश अनुभव होता है.दूसरी तरफ रात का अन्धकार डरावना लगता है , अच्छा लगे या न लगे दिन और रात का चक्र घटित होगा ही।इसके विपरीत यदि हम अपने द्रष्टिकोण को बदलकर रात को विभावरी के रूप में देखे तो? अब हमारा रात्री के प्रति अभिगम कैसा होगा?अब रात और दिन दोनों ही स्थितियो में हम संतुलित है.
*अब द्रष्टिकोण में केवल बदलाव लाने की वजह से नापसंद स्थिति में भी “क्या अच्छा है” उसको देखना सिखने के कारण हमारे ही जीवन में सकारात्मकता बढ़ी.
यह सिद्धांत कहता है कि जीवन में कई प्रकार के अनुभव होते है और होते ही रहेंगे, कई प्रकार की अलग अलग स्थितियां उदभव होती ही रहेगी और स्थितियां बदलती भी रहेगी, यदि हम जीवन में समता भाव को विकसित करें और हर प्रकार की स्थिति को स्वीकार करने का सकारात्मक अभिगम विकसित करे तो जीवन अधिक सरल और खुशहाल हो जाता है .तब हम जीवन में शांत और सकारात्मक वातावरण सृजन कर पाते है – यह सिद्धांत है सहज स्वीकार का सिद्धांत।
यह सिद्धांत – जीवन के द्वंद्वों को पार करने की क्षमता पर ध्यान केंद्रित करता है, यदि इस सिद्धांत को आत्मसात कर दिया तो वास्तविक जीवन में जीवनकाल के दौरान ही हम मुक्ति को प्राप्त कर सकते है। विरोधाभास के स्वीकार का सिद्धांत अपने आंतरिक विरोधाभासी स्थितियों पर सहज नियंत्रण प्राप्त करना है अर्थात द्वान्वों से प्रभावित नहीं होना है।
इस स्वीकार के सिद्धांत के अनुसरण से बाहरी द्वंद्वों के समायोजन (समायोजन अर्थात परस्पर विरोधी आवश्यकताओं को संतुलित करने की व्यवहारिक कुशलता ) के साथ अंतर्मन की शांति और संतुलन को बनाए रख सकते हैं—चाहे यह दिन हो या रात, गर्मी हो या सर्दी, अकेलापन हो या साथी होना , दुख या सुख , मिलन हो या जुदाई , ऊर्जावान या थका हुआ महसूस करना, अच्छा मूड या बुरा मूड,— क्योंकि आपने जीवन की विरोधाभासी विविधताओं के साथ पहले ही सामंजस्य अर्जित कर ली है।
सिद्धांत शुरू होता है एक सामान्य स्थिति से “रात हो या दिन, गर्मी हो या सर्दी”, जैसी घटना का सहज स्वीकार करते करते यह सिद्धांत जीवन के भिन्न भिन्न विरोधाभासी पहलुओं को प्रभावित करने लगता है जैसे सफलता हो या असफलता, प्रचुरता हो या अभाव – जीवन की विरोधाभासी विविधताओं से सामंजस्य और सहज रूप से स्वीकार करने की तैयारी कहो या सक्षमता यह सिद्धांत के स्वीकार में निहित है।
सहज स्वीकार के अवकाश और अवसर उदहारण – सब्जी में नमक की मात्र अधिक होने पर, चिल्लाना शुरू न करते हुए थोडा सा दहीं सब्जी में मिला ले – कभी प्रवास करते समय वाहन में आरामदायक सिट नहीं मिली ,अब अपसेट होकर प्रवास करना है या फिर जो सिट मिली है उसी का धन्यवाद करते हुए यात्रा पूर्ण करनी है ? बारिश शुरू हो गई और हमारे पास छाता नहीं है , अब बारिश को कोसते रहेना है या भीगने का आनंद लेते हुए आगे बढ़ना है ? छोटी छोटी दिक्कतों में बड़ा अपसेट हो जाना,स्थितियों का आवश्यकता से अधिक प्रतिरोध करना , इन सभी स्थितियों का विरोधाभास बाहर कहीं नहीं है – ध्यान से देखा जाए तो विरोधाभास कहीं हमारे भीतर ही है । यदि हम बाहरी विरोधाभासी स्थितियों का स्वीकार सहज करना सिख जाते है तो हमारे भीतर के आंतरिक विरोधाभास से हम सहज ही ऊपर उठ सकते है ।
उदहारण –मीरा बाई ने जीवन में जो भी स्थितियाँ आयी उसका स्वीकार किया – ज़हर पिलाया तो वो भी सहज स्वीकार करते हुए पी लिया और सत्संग में बुलाया तो वहां भी सहज चल दिया – मीरा का एक कीर्तन है –” राम राखे तेम रहिये ओधवजी – कोई दिन पहेरवा ने हीर ना चीर तो कोई दिन सादा फरिये – कोई दिन सुवाने गाड़ी तकिया तो कोई दिन भोंय पर सुइये”।
विपश्यना – आती जाती साँसों को देखते रहो, साँसों को देखते देखते ही समता प्राप्त हो जायेगी। क्या साँस भीतर आये तब हम नाचते है कि अरे वाह साँस आयी और जब साँस छोड़ते है तो क्या हम दुखी होते है कि मेरी प्यारी साँस को अब छोड़ना पड़ रहा है ? – नहीं साँसों का आना जाना सहज स्वीकार कर लिया है “सुख आवे नाचे नहीं ,दुःख आवे ना रोये, सुख दुःख में समता रहे , जीवन निहाल होय “।
विरोधाभासी स्वभाव के लोगो के साथ जब हमारा कार्य शुरू होता है तो तुलसीदास जी ने बहुत सुंदर बात कही है – तुलसी इस संसार में भात भात के लोग ,सब से हिलमिल चालिए , नदी नाव संजोग ।
जीवन में प्रसंशा सुनना सबको अच्छा लगता है किन्तु आलोचना का भय हमेशा बना रहेता है, कभी कभी अकेलेपन का , अभाव का, असफलता, रोग, बुढ़ापा और मृत्यु का भय,ये भय कहीं भीतर चित्त में छिपे ही रहेते है – और विभिन्न परिस्थितियों में प्रतिक्रियाओं के रूप में सतह पर आते है- जीवन में , हमें इच्छाओं और भयों को उत्पन्न करने वाली स्थितियों का सामना करना पड़ता है। हमारे अंतर्मन की इच्छाओं और भयों के स्वीकार पर आधारित हमारी प्रतिक्रिया होती है – इसीलिए इच्छा को जाँचकर और भय को स्वीकार करके उस पर कार्य करने से स्वीकार का सिद्धांत बहुधा हमें भीतर से शांत और संतुलित बनाये रखता है।
यह सिद्धांत व्यक्ति की विरोधाभासी स्थिति में परिपक्व विचार द्वारा कैसे संतुलन स्थापित किया जाए उसका विवरण करता है। यह उन लोगों के लिए है जो विकास का अनुभव करना चाहते हैं, जो बेहतर व्यक्ति, बेहतर माता-पिता, बेहतर साथी बनना चाहते हैं, और जिनमें सीखने और विकसित होने की एक मजबूत इच्छा है। यह उन लोगों के लिए है- जो खुशी और दुःख, असफलता और सफलता के बीच एक पेंडुलम की तरह स्विंग करने से थक चुके हैं, जो जीवन के पेंडुलम स्विंग को नियंत्रित करने वाले नियमों को समझना चाहते हैं।
विपरीत स्थिति जीवन में उद्भव होगी ही – प्राचीन रसायनशास्त्री की एक कहानी है, कहा जाता था कि वे सीसा को सोने में बदलने के संशोधन प्रयोग करते थे , लेकिन कभी कभी सीसे की बजाय कोई निम्न पदार्थ मिलता, तो वैसे पदार्थ को भी सोने में बदलने का प्रयोग जारी रखते थे । वे स्वयं से कहेते कि यह भी सिखने का समय है ।
किन्तु इसका अर्थ यह बिलकुल नहीं है कि सिखने के लिए हमें कठिन स्थितियों की कामना करते रहेनी हैं, किन्तु जब हम ऐसी कोई विपरीत स्थिति का सामना करते हैं, तो हम उनसे बहुत कुछ सीख सकते हैं।उस कठिन स्थिति के प्रतिकार में जितनी अधिक उर्जा का व्यय हम करते है , उससे कई कम उर्जा से यदि हम उस स्थिति से सिखने का प्रयास करे तो हम जल्द ही उस स्थिति से उबर आते है या उस स्थिति पर नियंत्रण कर लेते है।
आपका मंगल हो आपका कल्याण हो आपका शुभ हो इसी मंगल कामना के साथ शांति शक्ति आनंद सभी के लिए।