8th Principle of Wise Action

8th The Principle of Wise Action – “You will make your conflicts disappear when you understand them in their ultimate root, not when you want to resolve them.” 

“जब आप अपने संघर्षों की मूल जड़ को समझ लेंगे, तब वे समाप्त हो जाएंगे, न कि तब जब आप उन्हें हल करना चाहते है ।”

सामान्य जीवन में हर कोई अपनी समस्याओं का सामना बिना उनकी जड़ को समझे करता है।यदि हम इस तरह से समस्याओं को सुल्जाने का प्रयास करते हैं, तो हमारी समस्या वास्तव में हल नहीं होगी; मात्र कुछ समय के लिए टल सकती है, लेकिन कुछ समय बाद वह फिर से उभर आएगी या और भी जटिल हो जाएगी या साथ अन्य समस्याएं भी पैदा हो जाएगी। यह सिद्धांत यह नहीं कहता कि जब कोई समस्या उत्पन्न हो तो हमें कुछ नहीं करना चाहिए।लेकिन जब समस्या का सामना करें, तो हमें उसे गहराई से समझना चाहिए।

असुविधाएँ, कठिनाइयाँ, बाधाएँ, समस्याएँ, विरोधाभास,संघर्ष। हमारी जिंदगी का हिस्सा है।

असुविधाएँ(Inconvenience ), कठिनाइयाँ (Difficulties), बाधाएँ (Obstacles), समस्याएँ (Problems ), विरोधाभास( Contradiction), संघर्ष (Conflicts ) क्या है?

असुविधाएँ छोटी-छोटी मामूली परेशानियाँ है-जो आपकी दिनचर्या में थोड़ी सी रुकावट या देरी का कारण बनती है। जैसे एक शहर से दूसरे शहर की यात्रा करते समय ट्रैफिक जाम हो जाता है। यह सिर्फ एक असुविधा है जिसे थोड़े से समायोजन की आवश्यकता होती है, लेकिन यह समग्र स्थिति या लक्ष्यों पर विशेष प्रभाव नहीं डालती।

कठिनाई – जब हम कुछ कर रहे होते है और वह करना हमारे लिए कठिन प्रतीत होता है या हमें यह पता नहीं होता कि उस कार्य को कैसे करना है। उदाहरण:मैं गणित का एक कठिन सवाल हल करने की कोशिश कर रही हूँ, लेकिन मुझे समझ नहीं आ रहा कि इसे कैसे हल करना है। यह एक कठिनाई है।इसे पार करने के लिए प्रयास, कौशल की आवश्यकता होती है।

बाधा- ( Obstacle) हमारे प्रगति या उपलब्धि के रास्ते में अवरोध है,जिसे हटाना या पार करना आवश्यक है ताकि आगे बढ़ा जा सके। उदहारण एक छात्र परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं। अचानक बिजली चली जाती है। उसकी पढ़ाई में यह एक बाधा है क्योंकि यह पढाई की प्रक्रिया को विपरीत रूप से प्रभावित करता है। इस बाधा को पार करने के लिए शांत होकर मोमबत्ती या दीपक को जलाकर स्वस्थ मन से अपनी पढ़ाई जारी रखनी होगी। बाधा वह है जो किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति की दिशा में रुकावट पैदा करती है और जिसे दूर करके हम अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ सकते है।

समस्या (Problem ) एक स्थिति/अवस्था है जो अवांछनीय या हानिकारक होती है और इसके समाधान की आवश्यकता होती है। उदहारण – एक छोटे से गाँव की स्कूल में पर्याप्त शिक्षण सामग्री नहीं है, और बच्चों के पास किताबें, कॉपियाँ, और अन्य आवश्यक सामग्री की कमी है। स्कूल की छत टपक रही है और बारिश का पानी अंदर आ रहा है। यह एक समस्या है जिसे हल करना आवश्यक है क्योंकि इससे बच्चों की शिक्षा पर बुरा असर पड़ रहा है।

विरोधाभास (Contradiction) – वह स्थिति है जहां दो या दो से अधिक बयान, विचार या कार्य एक-दूसरे के विरोधाभासी होते हैं , जो एक ही समय एक साथ लागु नहीं हो सकते। इसमें असंगति और पारस्परिक विरोधाभास शामिल होता है। उदाहरण:किसी व्यक्ति का कहना कि “मैं हमेशा सच बोलता हूँ” और फिर यह कहना कि “मैंने अभी झूठ बोला है”। कोई व्यक्ति कहता है, “मैं कभी देर नहीं करता,” लेकिन उसी समय कहता है, “मैं आज देर से आया हूँ।” ये दोनों बयान एक साथ सही नहीं हो सकते। यह विरोधाभास है।

संघर्ष (conflict ) – एक गंभीर असहमति या तर्क है, जो अक्सर दो या अधिक पक्षों के बीच दीर्घकाल तक चलता है। उदहारण – कार्यालय में सहकर्मीयों के बीच कार्य की जिम्मेदारियों को लेकर गंभीर असहमति हो गई है। यह एक संघर्ष है जो हमारे काम करने के वातावरण को प्रभावित कर रहा है।

हमें असुविधा,कठिनाई, बाधा, और समस्या को चुनौतियों के रूप में देखना चाहिए। क्या हम यह जानते है कि असुविधा,कठिनाई, बाधा, और समस्या यह सभी हमारे जीवन की “छुपी हुई”संभावनाएँ हैं? इन चुनौतियों का स्वीकार हमारे आंतरिक विकास में मददगार होता है। हमें यह समझना होगा कि हमने अपने जीवन के दौरान जिन चीजों को या स्थितियों को नकारात्मक घटना के रूप में माना , वही अक्सर वास्तव में संभावनाओं की स्थितियाँ बनी।

कुछ उदहारण : असुविधा मेरी सुधार करने की क्षमता को बढ़ाने की संभावना है। उदाहरण: यात्रा के दौरान यदि आपकी गाड़ी का टायर पंचर हो जाता है, तो यह एक असुविधा है। लेकिन इस असुविधा के कारण, आप टायर बदलने की प्रक्रिया को सीखते हैं और इस प्रकार हमारी आत्मनिर्भरता की क्षमता को सुधारते हैं।

कठिनाइयाँ मेरी क्षमता को बढ़ाने के छुपे हुए अवसर हैं। उदाहरण: मान लें कि आप एक नई भाषा सीख रहे हैं और आपको कुछ शब्दों और व्याकरण को समझने में कठिनाई हो रही है। लेकिन यह आपको और अधिक मेहनत करने और अपनी सीखने की क्षमता को बढ़ाने का अवसर प्रदान करती है।

बाधा (obstacles) मेरे विवेक और समय पर काम करने की क्षमता को बढ़ाने की संभावना है। उदाहरण: यदि आप किसी महत्वपूर्ण मीटिंग में जा रहे हैं और रास्ते में एक सड़क निर्माण के कारण ट्रैफिक जाम हो जाता है, तो यह एक बाधा है। यह स्थिति आपके विवेक और धैर्य की क्षमता को परखती है। तब आप वैकल्पिक मार्ग खोजते हैं – अन्य उपाय भी अपनाते हैं।

समस्या (problems)- मेरी क्षमता के लिए एक चुनौती है। उदाहरण: आप किसी प्रोजेक्ट को प्रोजेक्टर पर एक्सप्लेन कर रहे हैं और अचानक से आपका प्रोजेक्टर बंध हो जाता है। अब यह समस्या, आपकी समाधान खोजने की क्षमता को चुनौती देती है। आप इसे ठीक करने के तरीके ढूंढते हैं या वैकल्पिक साधनों का उपयोग करते हैं।

इन उदाहरणों के माध्यम से आप देख सकते हैं कि कैसे असुविधाएँ, कठिनाइयाँ, बाधाएँ और समस्याएँ वास्तव में हमारी क्षमताओं को बढ़ाने और सुधारने के अवसर हो सकते हैं।

अगले ४० दिनों तक, प्रतिबद्ध रहे कि हम स्थितियों से भागने के बजाय उनका सामना करें।

अभ्यास – एक पेपर पर लिखें और हर दिन पढ़ें :

१-“असुविधा सुधार करने की मेरी क्षमता को विकसित करने की संभावना है।”

२-“बाधा मेरे विवेक और धैर्य पर कार्य करने की क्षमता को विकसित करने का अभ्यास है।”

३-“कठिनाइयाँ मेरी क्षमता को विकसित करने के लिए छुपे हुए अवसर हैं।

४-“समस्या मेरी क्षमता के लिए एक चुनौती है।”

हमें यह सीखना है कि “असुविधा,कठिनाई बाधा, समस्या” – “संघर्ष और  विरोधाभास” के बीच अंतर कैसे करें। हम सामान्यतः इनके बारे में भ्रमित होते हैं और इन सभी के प्रति एक ही तरह से प्रतिक्रिया करते हैं। यह एक बड़ी गड़बड़ी हम से हो जाती है!

इन्हें अलग-अलग समझते है – असुविधाएँ और कठिनाइयाँ:”मुझे अभी कौन-कौन सी असुविधाएँ और कठिनाइयाँ हैं? मुझे पहले कौन-कौन सी असुविधाएँ और कठिनाइयाँ थीं?” बाधाएँ और समस्याएँ:”मुझे कौन-कौन सी बाधाएँ और समस्याएँ हैं?”मुझे पहले कौन-कौन सी बाधाएँ और समस्याएँ थीं?”

अपनी स्मृति और वर्तमान स्थितियों से इन्हें इकट्ठा करने का प्रयास करें।जब आपके पास सभी उत्तर हो जाएँ, तो विश्लेषण करें और एक और दूसरे के बीच के अंतर के बारे में सोचें।

असुविधा,कठिनाई, बाधा, और समस्या चुनौतियों के रूप में है, जो हमें आगे बढ़ने और कार्य करने के लिए प्रेरित करती हैं। लेकिन संघर्ष और विरोधाभास पूरी तरह से अलग मामला है – संघर्ष और विरोधाभास हमें एक बंद घेरे में फंसा सकते हैं और आपको आगे बढ़ने नहीं देंगे। अर्थात संघर्ष और विरोधाभास की स्थितियों में हम एक vicious circle में फंसे रहेते है, जिससे हमारी प्रगति रुक जाएगी ।

जीवन में हमेशा हमने संघर्षों के समाधान करने का केवल उथली सतह पर प्रयास किया है। जब हम समस्या में घिरे होते है तब हम जल्द से जल्द उसका तत्कालीन हल खोजने की कोशिश करते है , और उस समय हम जो निर्णय लेते है वह पर्याप्त धीरज और विवेक के साथ नहीं लिया होता , इस कारण कई बार वह निर्णय आगे जा कर और भी संघर्ष को उत्तेजित करता रहता है। इस प्रकार हम समस्याओं की जड़ों को खोजने के स्थान पर उपरी सतह का समाधान खोजते है सिर्फ यही सोचकर कि अभी के लिए तनाव कम हो जाएँ।   

इस सिद्धांत का हमें दो पहलू में विश्लेषण करते हैं:

१-संघर्षों को निराकरण करना: सक्रिय और सजगतापूर्वक संघर्षों का समाधान ढूंढना।इसमें समस्याओं से व्यवहार करना, उनकी मूलप्रकृति को समझना फिर समाधानों की खोज करना।

२-संघर्षों को हल करने की जरूरत नहीं: संघर्षों का सामना करने का एक दूसरा पहलु यह भी हो सकता है कि हम संघर्षों को सामान्य तरीके से ठीक करने की बजाय उनके साथ अलग दृष्टिकोण से या द्रष्टिकोण में परिवर्तन करके समाधान प्राप्त करने का प्रयास करे।

यह सिद्धांत संघर्षों के प्रति एक विचारशील दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करता है, सामान्य समाधान के परे परिवर्तन की दिशा में कार्य करने की प्रेरणा देता है।जब तक हम संघर्ष की जड़ तक नहीं पहुँचते, जहाँ वह उत्पन्न हुआ ,तब तक वह संघर्ष हमारे सामने रहेगा। लेकिन जब हम संघर्ष के मूल कारण को पहचान लेते हैं, तो वह हमारे जीवन से अदृश्य हो जाएगा।

संघर्ष की स्थिति दो प्रकार की होती है :

आंतरिक संघर्ष: जब आपके अंदर विचारों की टकराव होती है, जैसे कि आपको एक निर्णय लेने में समस्या हो रही हो, और आपके विचार और भावनाएँ एक-दूसरे से मेल नहीं खा रही हैं। उदाहरण के लिए, जब करियर को लेकर निर्णय लेने में संघर्ष हो रहा है , क्योंकि एक तरह आपको पैसा भी कमाना है और दूसरी तरफ आपको समाज सेवा भी करनी है।

बाहरी संघर्ष: बाहरी संघर्ष के एक उदाहरण में, एक व्यक्ति को अपने परिवार और करियर के बीच में एक टकराव हो सकता है। वे अपने परिवार के लिए कितने समय और संसाधनों को समर्पित करें, और साथ ही उनके करियर में उन्हें अपनी प्रतिष्ठा बनाए रखने की जरूरत है। यह स्थिति व्यक्ति को संघर्ष में डालती है, क्योंकि दोनों क्षेत्रों में प्राथमिकताएं बनाए रखना मुश्किल हो सकता है।

संघर्षों को हल करने के कुछ प्रयास या सुजाव –

प्रयास १-जब हम संघर्ष में होते हैं, तब दो संभावनाएं होती हैं। या तो हम दूसरों को दोष दें या हम अपनी खामी खोजने की कोशिश करे।अक्सर हम अपने विचार या मापदंड को दूसरे व्यक्ति पर थोपने की कोशिश करते है ।(यह सामान्य तरीका है कि तुम सुधर जाओ)लेकिन यह स्थायी हल नहीं है।

प्रयास २ – हम विषयों के मूल से जुड़ने का अभ्यास करेंगे ।

उदाहरण – एक टेबल का लैम्प। हम अपनी सजग सचेत सोच से शुरू करते हैं:

१ – लैम्प का इतिहास क्या है ?   २ – लैम्प का मूल कारण क्या है? ३- लैम्प की विशेषताएँ क्या हैं ?

४ – लैम्प का उपयोग और अनुप्रयोग। ५- लैम्प से संबंधित वस्तुएँ क्या हैं ?   

६- लैंप का संभवित भविष्य क्या है?

७- लैंप के उपयोग के बारे में आपका क्या मत है और इस मत का कारण?

यदि हम इसे रोजाना करें, एक दिन लैंप के बारे में, दूसरे दिन किसी समस्या के बारे में, तीसरे दिन किसी असुविधा, संघर्ष या कठिन स्थिति के बारे में, तो हमारे मस्तिष्क में हमारा एक गहरा गहन प्रवेश होगा। और हम विषयों के मूल से जुड़ने का अभ्यास कर पायेंगे।

यह अभ्यास हमें अपने विचारों को स्पष्टीकरण करने में मदद करता है और हमारी दैनिक जीवनशैली को बेहतर करता है। हमारे सोचने के तरीके के बारे में “मूल की जांच” ८ वे सिद्धांत का मुख्य उदेश्य है । हम “इस या उस स्थिति” के बारे में क्या और कैसे सोचते है ? जीवन के प्रति हमारा दृष्टिकोण क्या है, और हमें जीवन से क्या चाहिए? चलिए शुरू करते है इन प्रश्नों के ऊतर के मूल तक पहुँचने की यात्रा …

कुछ प्रश्न और मुद्दे जिन पर हमें अविरत कार्य करने होंगे –

१-क्या आप संघर्षों का समाधान चाहते है ? या संघर्ष के मूल को खोजकर उस मूल पर कार्य करना चाहते है ?

२-आप के विचार से “संघर्ष” क्या होता है ?

३-आपके जीवन के संघर्षों के मुख्य मूल क्या है ?

४-जब आप संघर्ष के मूल को खोज लेते है तब आप कैसा अनुभव करते है ?

५-आपके जीवन में संघर्ष क्यों है ?

भवतु सब्ब मंगलम !

Kalindi Mehta

कालिंदी महेता की योग यात्रा के प्रारंभ में – “मन की बातें

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