सिद्धांत १ – परिवर्तन या विकास के विरुद्ध जाना – स्वयं के विरुद्ध जाना है।
To go against the evolution of things is to go against oneself.
ब्रह्मांड में सभी चीजें परिवर्तित हो रही हैं, विकास की प्रक्रिया में कुछ निश्चित समय चक्र हैं जो समय के साथ चलता रहेता हैं। जिसमें चीजों की उत्पत्ति, विकास, और परिवर्तन शामिल होते हैं। विकास नियमित रूप से होता रहता है। जानवर, पौधे, पत्थर समय चक्र के साथ निरंतर बदलते रहते हैं। यदि कुछ और उदाहरण विचार करें, तो विकास या परिवर्तन की अवधारणा स्पष्ट हो जाएगी।
चलिए , जानते है कि परिवर्तन और विकास कैसे हमारे जीवन के हर क्षेत्र में व्याप्त है –
जीवन की शुरुआत एक अमीबा की उत्पत्ति थी। फिर उत्क्रांति के साथ विकास हुआ मछली, उभयचर, सरीसृप और अंततः स्तनधारी विकसित हुए। परिवर्तन – विकास एक प्रक्रिया है जो बदलते पर्यावरण का सामना भी करता है और उसके अनुरूप भी हो जाता है , विकास प्रक्रिया मानवजाति के साथ कभी रुकेगी नहीं। भविष्य में मनुष्य से अधिक जटिल और अधिक विकसित अन्य प्राणियाँ होंगी।
समाज: जनजातीय समूह जो साथ मिलकर शिकार और मछली पकड़ते थे। आग की खोज ने नए संभावनाओं को खोल दिया। फिर भाषा का आविष्कार – पशुओं का पालन की शुरुआत हुई और ऐसे ही विकास क्रम में आज मनुष्य चाँद और सूर्य को नमन करते हुए उन पर अभ्यास भी करने लगा ।विकास एक प्रक्रिया है जो मुश्किलों को पार करने के लिए नए उपकरण और प्रक्रियाओं का आविष्कार करने की है, जो मनुष्य को अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए और अधिक सक्षम बनाता है।
शिशु के रूप में हम पूरी तरह से अपने माता-पिता पर निर्भर थे। धीरे-धीरे हमने अपने बड़ों का अनुकरण करके हम स्वायत्त हो गए, इस बिंदु पर यांत्रिक विकास रुक जाता है। आगे का विकास हमारे चेतन प्रयासों पर निर्भर करता है, जो हमारे जीवन में नई संभावनाओं को खोलेगा। जीवन विभिन्न चरणों से गुजरता हैं: बचपन, किशोरावस्था, परिपक्वता और वृद्धावस्था।विकासात्मक प्रक्रिया अधिक स्वतंत्रता की दिशा में है। हम देख सकते हैं कि विकास एक प्रक्रिया है जिसमें विभिन्न चरण होते हैं: जन्म, वृद्धि, विकास, क्षय और विघटन। “जीवन विकास का सबसे बड़ा पहलु है और मृत्यु परिवर्तन का सबसे बड़ा नियम है”*
परिवर्तन और विकास का स्वीकार –
हमें निर्भरता से स्वतंत्रता की ओर – अज्ञान से ज्ञान की ओर – चिंताओं से प्रतिबद्धताओं की ओर ले जाता है
विकास के विरुद्ध व्यक्ति का अभिगम –
१- हमेशा अपनी नज़रें अतीत में बनाए रखता है।
२- वह हमेशा पुराने बीते हुए दिनों की प्रशंसा करता है, और समाज के नए विचारों की आलोचना करता है।
३- वह वर्तमान समय की नकारात्मक पहलुओं को अतीत की सकारात्मक पहलुओं के साथ तुलना करता है।
४- वह हमेशा उसी समस्या के बारे में बात करता है जो उसे वर्षों से परेशान कर रही है और उसे आगे बढ़ने से रोकती है।
किन्तु हमें विकसित होने से क्या रोकता है ?
१ – “मानव मन परिवर्तनों से डरता है” – वह सुरक्षा और स्थिरता को प्राथमिकता देता है । लेकिन दुनिया गतिशील है और यह लगातार बदल रही है। जो लोग इन परिवर्तनों के साथ कदम से कदम मिलकर चलने में असमर्थ है या उदास है या कुंठित है , वे लोगों का जीवन ठहराव में रह जाता हैं, वे एक रूटीन जीवन में फंस जाते हैं और फिर परिवर्तनों का सिर्फ विरोध करते रहेते हैं। विकास की प्रक्रिया में शामिल होना जीवन के धारा में शामिल होने के समान है। जब हम इस निरंतर परिवर्तन का विरोध करते हैं, तो हम जीवन की धारा से बाहर हो जाते हैं और इस तरह हम धीरे धीरे स्वयं के ही विरुद्ध होने लगते है जैसे परिवर्तन का स्वीकार न करने से अक्सर हम आंतरिक आत्मविश्वास खो देते हैं।
२-हम केवल विकासात्मक प्रक्रिया के कुछ चरणों को ही पसंद करते हैं। – कुछ लोग समय के साथ शरीर की अवस्था के परिवर्तन को अवरोधना चाहते है – शरीर का वृद्ध होना स्वीकार नहीं करते। वे अपनी झाइयों, सफेद बालों को छुपाने की कोशिश करते हैं, और वे ऐसे व्यवहार करते हैं मानते हैं कि वे 20 साल के युवा हैं। बचपन, किशोरावस्था और परिपक्वता को पसंद करते हैं, लेकिन हम क्षय अर्थात वृद्धावस्था और मृत्यु को सहज स्वीकार नहीं करते हैं।वृद्धवस्था या मृत्यु का भय परिवर्तन को स्वीकार करने से डरता है।
३-जीवन में कुछ लोग जो खुद पर भरोसा नहीं करते और जीवन का सामना करने का साहस नहीं दिखाते। वे किसी अपने पर आश्रित रहना पसंद करते हैं, तो कुछ लोगों को परिवर्तन से दूर भागते है – जो भी है ठीक ही चल रहा है , परिवर्तन की आवश्यकता क्यों है ? – सामाजिक जीवन से दूर हो जाने का भय ,आर्थिक स्थिति का बिगड़ जाने का भय , भावनात्मक एकलता का भय , मानसिक भय ऐसे सभी प्रकार के भय के कारण व्यक्ति परिवर्तन को स्वीकार करने से डरता है।
४- मान्यताओं का गहरा प्रभाव-
-कुछ माता-पिता अपने बच्चों को हमेशा बच्चा ही मानते हैं।
-कुछ बॉस अपने कर्मचारी की रचनात्मकता के विरुद्ध होते हैं। वे कहते हैं: “हम इसे पिछले 30 साल से इसी तरीके से कर रहे हैं और आप अब इसे बदल नहीं सकते।”
यह सिद्धांत कहता है कि हमारे आसपास का जीवन परिवर्तित होगा ही…अब यह हम पर निर्भर करता है कि हम इस बदलाव का, विकास का, परिवर्तन का स्वीकार कैसे करते है ?
यदि हम इन बदलाव का, विकास का विरोध करते है फिर भी यह बदलाव की और विकास की प्रक्रिया रुकने वाली नहीं है।जब हम इस बदलाव को स्वीकार कर लेते है तब हम अपने जीवन से दुःख और पीड़ा को कम कर सकते है।
हम परिवर्तन के विरुद्ध क्यों हो जाते हैं ?उत्तर है – हमारे मन का आंतरिक घर्षण या संघर्ष या असमंजस या डर है…
जीवन में एक ही चीज अटल है और वह है परिवर्तन किन्तु हमारा मन हमेशा ही परिवर्तन से डरता है । परिवर्तन – विकास के साथ जब हम चलते हैं तो हम धारा के प्रवाह के साथ बने रहते हैं , ऐसा नहीं है कि परिवर्तन के सभी पहलू हमें पसंद आते हैं – हम सिर्फ अपनी ज़रूरतों और सुविधाओं के वश ही परिवर्तन के कुछ पहलुओं को स्वीकार करते हैं।
परिवर्तन दो प्रकार के होते हैं यांत्रिक और आंतरिक
यांत्रिक परिवर्तन सभी के लिए होता है और आंतरिक परिवर्तन व्यक्तिगत होता है जैसे टेलीफोन की अविष्कार से लेकर मोबाइल तक का आधुनिक विज्ञान का परिवर्तन – मोबाइल यहां यांत्रिक परिवर्तन है लेकिन अब इस मोबाइल का उपयोग हम कैसे करते हैं यह आंतरिक परिवर्तन की परिभाषा बन जाता है
पहले हम रेलवे की टिकट निकालने के लिए स्वयं रेलवे स्टेशन जाते रहे हैं, अब अपने ही मोबाइल में हम इस सुविधा को प्राप्त कर लेते है , हम रेलवे की टिकिट अपने घर का राशन, कपडे यहाँ तक कि मोबाइल ,लेपटोप जैसी चीजें भी ऑनलाइन या डिजिटल पेमेंट करके घर पर मंगवाते है ,
पहले हम बैंक में जाते थे – अब बैंक हमारे मोबाइल में आ गई है
पहले जब हमारे घर का कोई सदस्य विदेश व्यापर करने जाता था तो सालों तक उसका चेहरा हम देख नहीं पाते थे – केवल पत्र व्यवहार बना रहता था – अब परिवर्तन के कारण तुरंत ही हम मोबाइल से अपने स्वजन से दुनिया के किसी भी कोने में बात कर सकते है उसे देख सकते है विडिओ कालिंग कर सकते है
विकास /परिवर्तन का स्वीकार करो या ना करो वह घटित होता ही है – जैसे कोई गुरुत्वाकर्षण के नियम को नहीं मानेगा तो क्या पृथ्वी पर वह उल्टा हो जाएगा ? जी नहीं , वैसे ही परिवर्तन तो होता ही रहेगा चाहे आप स्वीकार करो या ना करो
यदि हम परिवर्तन को स्वीकार नहीं करते तो हम स्वयं के विरुद्ध ही जाते।
१- जैसे लड़कियां और लड़के छोटे होते तब उनका व्यवहार जो होता है वह धीरे-धीरे बड़े होने पर बदलता ही है – लड़कियों को मेंस्ट्रुअल साइकिल शुरू हो जाती हैं या लड़के पुरुष रूप में परिपक्व होने लगते हैं -उनका व्यवहार बदलता है परिवर्तित होता है।
२-जब लड़की की शादी होती है तो ससुराल जाती है वहां भी एक बहुत बड़ा परिवर्तन आता है उसकी हमेशा की जीवनशैली बदल जाती है और ससुराल वालों के जीवन में भी बहुत बड़ा परिवर्तन आता है। एक नया व्यक्ति उनके परिवार में भी आया है – दोनों ही को परिवर्तन स्वीकार करना पड़ता है।
३-जब पति पत्नी जब माता-पिता बनते हैं तो उनके जीवन में बहुत बड़ा परिवर्तन आता है जैसे दोनों ही माता-पिता संतान में व्यस्त होने लगते हैं। माता-पिता एक दूसरे के प्रति प्रेम तो रखते हैं किंतु अधिक समय वह संतान के नर्चर में देते हैं यह भी रिश्तों में अद्भुत परिवर्तन है।
४-कभी कभी शरीर बीमारीग्रस्त या रोगग्रस्त या अशक्त हो जाता है यह जीवन का अलग ही परिवर्तन है – शरीर को कितना भी स्वस्थ रखने का प्रयास करे किन्तु शरीर का स्वाभाव ही है “जन्म जरा रोग मृत्यु”।
५-संबंधों में कभी हम किसी से बहुत गहरे लगाव में होते हैं और उनसे संबंध टूट जाता है-कोई दूर चला जाता है-कोई हमेशा के लिए हमें छोड़ कर चला जाता है-किसी की मृत्यु हो जाती है-किसी भी कारणवश संबंधों से विश्वास उड़ जाता है-संबंधों में पहले जैसे निष्ठा नहीं रहती-कभी कभी स्वार्थ सधते ही सम्बन्ध तोड़ दिए जाते है-इस प्रकार से भिन्न भिन्न स्तर पर हम संबंधों में परिवर्तन देखते हैं।
६-कभी कभी समय, स्थान, पद और स्थिति परिवर्तित होते है – व्यक्ति के विचार विकसित होते है, कुछ नया ज्ञान या जीवन में कुछ ऐसे मित्र बन जाते है जो व्यक्ति के जीवन में परिवर्तन का कारण बन जाते हैं ।जिससे जीवन में दृष्टिकोण विचार परिवर्तित हो जाते है – हम किसी भी व्यक्ति की आलोचना नहीं कर सकते कि आप पहले तो ऐसा मानते थे अब मान्यता कैसे बदल गयी ?क्योंकि आपका द्रष्टिकोण अभी भी उस व्यक्ति के प्रति वही पुराना है ।इसलिए आपको धक्का लगेगा कि सामनेवाला व्यक्ति इतना कैसे बदल गया ? जीवन में हर क्षण परिवर्तन होता है इसका स्वीकार करना ही पड़ेगा।
जब हम बाहरी दुनिया के परिवर्तनों को स्वीकार करते हैं – उदहारण के रूप में जैसे कैश की जगह अब हम डिजिटल पेमेंट करते हैं तो शुरुआत में ऐसा लगता है कि यह सिर्फ बाहरी परिवर्तन है किंतु यह बाहरी परिवर्तन के स्वीकार के लिए सबसे पहले हमारे भीतर आंतरिक परिवर्तन होता है ।वह आंतरिक परिवर्तन ही हमें बाहरी परिवर्तन को स्वीकार करने के लिए शक्ति , प्रेरणा या हेतु देता है और हम उस बदलाव को स्वीकार करते हैं।
परिवर्तन जीवन का अभिन्न अटल भाग है – कभी कभी परिवर्तन जीवन में असफलताओं से भी आता है अधिकतर हम ऐसा मानते है कि निर्णयों से जीवन में परिवर्तन आते है किन्तु कभी कभी गलत निर्णयों के पछतावे से भी परिवर्तन आता है।
ऐसा कतही नहीं होता कि हर बार मोटिवेशनल बातों से परिवर्तन आता ही है , कभी कभी आलोचना और गलतियों से व्यक्ति के जीवन में आमूल परिवर्तन आता है।
परिवर्तन के नाम पर कई बार मुखौटा लगाकर लोग परिवर्तन और विकास की परिभाषा अपने-अपने सहूलियत से देते हैं-
१-समाज में स्वतंत्रता के नाम पर स्वच्छंदता की हिमाकत करते हुए मूल्यहीन कारणों से तलाक होना या शादी की रस्मों के स्थान लिव इन रिलेशन को बढ़ावा देना *
२-वृद्धवस्था में पहुंचे अपने ही माता पिता या परिवारजन को वृधाश्रम में भेज देते है, जब मातापिता सक्षम थे तब उन्होंने संतानों को अच्छा जीवन देने में शरीर शक्ति और संपत्ति न्योछावर की किन्तु अब संतान अपने कर्तव्यों को निभाने को बंधन का समजते है
३- विकास के नाम पर – रिश्ते को “इस्तेमाल करो और फेंक दो”- आज की पीढ़ी अधिक स्व केन्द्रित एवं स्वार्थी होती जा रही है ।
४- परिवर्तन का असर मानस पर कुछ विपरीत ढंग से भी हुआ है – हर स्थिति में मेरा क्या ? मुझे क्या मिलेगा ? यह अभिगम और यदि “मुझे कुछ नहीं मिलेगा तो मुझे क्या ?
५-टेक्नोलोजी और विज्ञान के विकास से भी कुछ हानि हुई – सामाजिक -निजी -शारीरिक – स्वास्थ्य और मानसिक स्तर पर विकास का सही अर्थ न समजकर विकास को हमने अपना विकार बना दिया
६ – आजकल परिवारों में भी परिवर्तन आए हैं (पहेले सयुंक्त परिवार थे धीरे धीरे विभक्त परिवार का चलन शुरू हुआ) संबंधों में भी परिवर्तन आए हैं
यह सिद्धांत हमें चुनाव का अवसर देते है यदि इस सिद्धांतों का उल्लंघन करते है तो कदाचित जीवन में पीड़ा और दुःख का सामना करना पड़ सकता है।
“यहाँ केवल सामान्य जनजीवन के सामान्य उदाहरण प्रस्तुत है, यहाँ प्रस्तुत कोई उदाहरण किसी व्यक्ति के जीवन से जुड़ा हुआ प्रतीत हो तो यह केवल एक संयोग ही है”।
सबका मंगल हो – सबका कल्याण हो ऐसी मंगल कामना के साथ।
आपने भी कोई अपने जीवन में परिवर्तन देखे होंगे तो इस यहां शेयर करें और हमें धन्य करे।
इन प्रश्नों के उत्तर स्वयं से पूछें और निरिक्षण करे हो सकरे तो किसी एक किताब में इसे दर्ज करते रहे
आपके शारीरिक परिवर्तन का निरक्षण – पहेले से लेकर आज तक आपकी कार्यक्षमता में क्या कुछ परिवर्तन हुआ है ?
आपकी शारीरिक स्थिति – आपके शरीर की आंतरिक अंग अवयव एवं बाहरी कार्यक्षमता इत्यादि
आपके शरीर का स्वास्थ्य – आपका मानसिक स्वास्थ्य – आपका भावनात्मक स्वास्थ्य
आपके भावनात्मक शरीर में जो परिवर्तन हुए उसका निरिक्षण – पहेले से लेकर आज तक – जीवन की भावनात्मक स्थिति में आपकी प्रतिक्रिया या प्रतिभाव में क्या कुछ परिवर्तन हुए है – भावनात्मक परिवर्तन सम्बन्धों में – व्यवसाय में – स्वास्थ्य के सम्बन्ध में इत्यादि
आपके विचारों में परिवर्तन हुआ है ? – पहेले जो विचार थे अब क्या विचार है ? विचारों में कहाँ परिवर्तन आया है ?
आपकी अपनी दुनिया में क्या क्या परिवर्तनों को आप देख पाए ?
आपकी प्रवृतियों में क्या परिवर्तन आप देख पाते है ?
आपकी स्वयं में और अपने भविष्य में क्या संभावनाओं में परिवर्तन आप देख पाते है ?
आपकी आसपास के लोग – आपके रिश्तेदारों में क्या परिवर्तन देखते है जो आपके जीवन से जुड़े है ? उनमे क्या बदलाव आया यह महत्त्व का नहीं है किन्तु आप के और उनके रिश्तों में आप क्या परिवर्तन देख पाते है
आपके दोस्तों के साथ जुड़े हुए जीवन में सिद्धांत एक के अभ्यास से पहेले कुछ टास्क – मेरे शारीरिक परिवर्तन का निरक्षण – पहेले से लेकर आज तक आपकी कार्यक्षमता में क्या कुछ परिवर्तन हुआ है ?
आपकी शारीरिक स्थिति – आपके शरीर की आंतरिक अंग अवयव एवं बाहरी कार्यक्षमता इत्यादि
आपके शरीर का स्वास्थ्य – आपका मानसिक स्वास्थ्य – आपका भावनात्मक स्वास्थ्य
आपके भावनात्मक शरीर में जो परिवर्तन हुए उसका निरिक्षण – पहेले से लेकर आज तक – जीवन की भावनात्मक स्थिति में आपकी प्रतिक्रिया या प्रतिभाव में क्या कुछ परिवर्तन हुए है – भावनात्मक परिवर्तन सम्बन्धों में – व्यवसाय में – स्वास्थ्य के सम्बन्ध में इत्यादि
आपके विचारों में परिवर्तन का असर – पहेले जो विचार थे अब क्या विचार है ? विचारों में कहाँ परिवर्तन आया है ?
आपकी दुनिया में क्या क्या परिवर्तनों को आप देख पाए ?
आपकी प्रवृतियों में क्या परिवर्तन आप देख पाते है ?
आपकी स्वयं में और अपने भविष्य में क्या संभावनाओं में परिवर्तन आप देख पाते है ?
आपकी आसपास के लोग – आपके रिश्तेदारों में क्या परिवर्तन देखते है जो आपके जीवन से जुड़े है ? उनमे क्या बदलाव आया यह महत्त्व का नहीं है किन्तु आप के और उनके रिश्तों में आप क्या परिवर्तन देख पाते है
आपके दोस्तों के साथ जुड़े हुए जीवन में क्या परिवर्तन देखते है – बातों के विषय – मिलने का समय –जीवन के मित्रों के मुद्दे पर हम क्या परिवर्तन देखते है ? ( दोस्तों के नाम भी सोचिये )
आपके परिवार में होते हुए परिवर्तन को निरिक्षण करे – माता पिता – भाई बहन – संतान –पति पत्नी – ससुराल के रिश्ते – माइके के रिश्ते
व्यवसाय में – व्यापार में – कार्यस्थल में क्या परिवर्तन देखते है ?
कुछ लोग जिनको हम अक्सर देखते है – कुछ स्थल जहाँ हम अक्सर गए है – उन लोगों में या स्थलों में क्या परिवर्तन आप देखते है ?
सकारात्मक या नकारात्मक ऐसा कुछ भी जज किये बिना विचार करे ,स्वयं से प्रमाणिक रहे ,स्वयं को निष्ठां से उत्तर दीजिये – कुछ पसंद आए वैसा परिवर्तन हुआ है तो कुछ मन को अच्छा न लगे वैसा भी परिवर्तन हुआ है – जो भी परिवर्तन हुआ है बस उसे निरिक्षण करना है
अभ्यास करते रहे … मार्ग खुद ही मिल जाएगा