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7th Valid Action Principle of Immediate Action”

The Principle of Immediate Action” If you pursue an end you enchain yourself, if everything you do is realized as if it were an end in itself you liberate yourself. सातवाँ सिद्धांत कहता है: “यदि आप किसी उद्देश्य का पीछा करते हैं तो आप स्वयं को बेड़ियों में बाँध देते हो ; लेकिन यदि आप हर कार्य को इस तरह करेंगे मानो वह स्वयं में एक उद्देश्य हो, तो आप स्वयं को मुक्त कर लेंगे।”

कहेने का तात्पर्य यह है कि – जब हमारे पास कोई लक्ष्य या उदेश्य होता है, तो हम अधिकतर केवल उस लक्ष्य पर ही ध्यान केंद्रित करते हैं और उस उदेश्य को प्राप्त करने के लिए आवश्यक सभी चरणों को हम जाने अनजाने में कम महत्व देते हैं।हमें ऐसा लगता है कि इन चरणों पर कार्य करना समय बर्बाद करने जैसा हैं, और कभी कभी यह छोटे बड़े चरण हमें कष्टदायी भी प्रतीत होते है लेकिन वास्तव में, ये चरण हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

उदहारण – किसी छात्र का उदेश्य डॉक्टर बनना है , अब वह कुछ ऐसा मन में ठान लेता है कि अब तो वह जब डॉक्टर बनेगा तभी खुश होगा तब वह छात्र स्वयं को “उदेश्य की बेड़ियों” में बांध लेता है ,लेकिन यदि वही छात्र स्कूल में छोटी कक्षा से बड़ी कक्षा में जब उत्तीर्ण होता है, तब हर बार उत्तीर्ण होने की ख़ुशी अनुभव करता है तो वह जीवन के सभी चरणों का आनंद मुक्त रूप से पाता है।एक दिन जीवन में बड़ी ख़ुशी आएगी तब हम खुश होंगे इस मृगतृष्णा में हम वर्तमान की कितनी छोटी छोटी खुशियों का आनंद नहीं उठा पाते।* (इसके सम्बंधित आप द्रष्टान्त देते हुए चर्चा कीजिये )

जब हमने स्वयं को किसी उदेश्य के साथ बाँध कर रख दिया तब हमारी स्थिति उस घोड़े जैसी होने लगती है जिस घोड़े के मुंह के आगे और आंखों के पास दोनों तरफ एक पट्टा सा बांधते है ताकि घोड़ा सिर्फ अपने लक्ष्य को देखें और अपने लक्ष्य की ओर ही चलें।

हम सभी “गुलाम” हैं। चौंक गए ?  हम वास्तव में स्वतंत्र नहीं हैं, बल्कि “उद्देश्यों की बेड़ियों” में बंधे हुए हैं। जब तक हम यह नहीं समझते कि “क्या हमें गुलाम बनाता है ?”तब तक हम और हो सकता है हमारे बच्चे भी गुलाम होंगे, क्योंकि उन्हें गुलाम माता-पिता द्वारा पाला जाएगा। “हम गुलाम है” और ये “उद्देश्य” हमारे “स्वामी” हैं। हमारे उदेश्य ही हम पर हावी होते है और फिर हमारे “मालिक” बन जाता है। उदहारण – यदि एक चालक एक वाहन को एक जगह से दूसरी जगह ले जाता है, तो वाहन चालक से अवगत नहीं होता, वह वाहन नहीं जानता कि उसे कौन चला रहा है। वाहन सेवा करने वाला होता है; यह चालक की इच्छाओं का दास होता है। हमारे लक्ष्यों के पीछे हमारे मालिक होते हैं। यही खोजना है कि हम किसके द्वारा चलाए जा रहे हैं।

“गाजर वाला गधा” यह कॉर्पोरेट रणनीति का एक रूपक है – गधे को गाजर दिखाना और उसे उदेश्य (Target) पर काम करने के लिए उत्साहित करना- मालिक के विचार से गाजर गधे को उदेश्य पूर्ति (Target) करने के लिए ‘प्रेरणा’ देती है और गधा सोचता है कि गाजर उसकी कड़ी मेहनत का ‘इनाम’ है। (समग्र जीवन यूँहीं गाजर देखते देखते ही बीत जाता है)*

अपने अवचेतन मन में खोजें, “हम यहाँ किन उद्देश्यों का पीछा कर रहे हैं?” कुछ उद्देश्य स्पष्ट होते हैं, जबकि कुछ अवचेतन में छिपे होते हैं, जो हमारे माता-पिता, जीवन के अनुभवों, दोस्तों, समाज और शिक्षकों द्वारा बोए गए हैं। ये उद्देश्य हमारे अस्तित्व में गहरे जुड़े होते हैं और हमें रोज़मर्रा की चीजें करने के लिए प्रेरित करते हैं, बिना यह समझे कि हमारे कार्यों के पीछे के कारण क्या हैं। हम उन उद्देश्यों का पीछा क्यों कर रहे हैं ?

इसके कई कारण हो सकते हैं : अहंकार , कीर्ति और प्रतिष्ठा, आलोचना का डर, असफलता का डर। ऐसे हजारों कारण हैं जो हमें किसी उद्देश्य का पीछा करवाते हैं।

सृष्टिकर्ता ने हमें अलग-अलग संयोजनों के साथ बनाया है। इस पृथ्वी पर जितने भी लोग है सभी लोगों के विचार ,व्यवहार, मान्यताएं द्रष्टिकोण आदि एक दुसरे से बिलकुल ही भिन्न – भिन्न हैं फिर भी यह आश्चर्यजनक बात है कि सभी मनुष्य मूल रूप से एक ही उद्देश्य का पीछा करते हैं – हम सभी कार्य में सफल होना चाहते हैं; हम सभी पैसा चाहते हैं; शादी करना चाहते हैं;  सभी प्रतिभाशाली बच्चे चाहते हैं,हम सभी सुंदर घर और कार चाहते हैं। *जो उदेश्य लाखों लोगों का है – उस उदेश्य को आप अपना उदेश्य कैसे कहे सकते हो ?

हम कदाचित इसीलिए “गुलाम” है जो केवल “मालिक के आदेशों” का बिना कोई चिंतन किये पालन करते है। शायद हम भेड़ जैसे ही बन गए है ,जो बिना सोचे समजे एक दुसरे का अंध अनुसरण करते रहेते है या फिर हम एक मशीन है जिसे एक प्रकार से सेटिंग कर देने पर निरंतर उसी प्रकार का प्रोडक्ट निर्माण करती जाती है।

सिद्धांत कहेता है कि यदि हम किसी उद्देश्य का पीछा करते हैं तो खुद को जंजीरों में बांध लेते हैं ,तो फिर हमें क्या करना चाहिए ? क्या व्यक्ति के पास कोई लक्ष्य, उद्देश्य, इच्छाएँ नहीं होनी चाहिए ? उद्देश्य के बीना  फिर हम कैसे जी सकते हैं?

इस सन्दर्भ में, हमारे लिए कुछ अद्भुत मार्ग के सुजाव हैं; लेकिन पहले हमें यह समझना होगा कि किसी उद्देश्य का पीछा करने से हम कैसे गुलाम बन जाते हैं? मान लीजिए कि मैंने अपने लिए घर बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। मेरे मस्तिष्क में घर की एक छवि बन जाती है , २४*७ घर का ही विचार, जिस कारण मेरे सोचने -समजने की शक्ति और विवेकबुद्धि पर विपरीत असर होता है क्योंकि अब हम वर्तमान में नहीं जी रहे। और इस कारण आने वाले कई वर्षों तक हम अपनी आँखें और कान अन्य किसी भी महत्वपूर्ण चीज़ के प्रति बंद कर लेते हैं क्योंकि हमारे लिए केवल महत्वपूर्णता घर बनाने में होती है। केवल उद्देश्य का पीछा करने के अंध जनून से हमारे जीवन की सारी रचनात्मकता खो जाती है; उद्देश्य घर है, कोई व्यापार है या करियर है – इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।

उदेश्यों की शुरुआत दो प्रकार से होती है – १) डर और २) आवश्यकता  

१)डर – असफलता का डर, बुढ़ापे का और मृत्यु का डर, स्वास्थ्य और स्वतंत्रता खोने का डर, प्यार खोने का डर, आलोचना का डर, आदि। इनमें से अधिकांश डर आपके चित्त के सबसे गहरे हिस्से में होते हैं और यही एक शक्तिशाली प्रभावी बल होते हैं।

२)उदेश्यों के साथ कई प्रकट आवश्यकताएँ भी हैं, जैसे जीवित रहने की आवश्यकता, प्रेम करने की,स्वास्थ्य की, सुरक्षा की, सामाजिक स्वीकृति की और अहंकार की आवश्यकता। हमारे डर और हमारी आवश्यकताएँ हमारे मन के सबसे गहरे हिस्से में स्थित होते हैं।

सिद्धांत का दूसरा हिस्सा कहता है कि यदि आप हर कार्य को अपने आप में एक लक्ष्य के रूप में करें , तो आप मुक्त हो सकते हैं।

उदहारण – जब हम कोई नया व्यवसाय शुरू करते है तब केवल “कितना मुनाफा होगा?” उस पर ध्यान देंगे तो हम स्वयं को “मुनाफे के उदेश्य से” बाँध देते है, हम उदेश्य के गुलाम बन जाते है, और हर  बार हमारे ग्राहक के साथ हमारा केवल लेन देन का सम्बन्ध ही होगा – हम जो प्रोडक्ट बेचना चाहते है उसे कैसे भी बेचने का प्रयास – हमें थका देगा, हो सकता है हम प्रोडक्ट बेच भी दे किन्तु संतोष और तृप्ति का अनुभव नहीं होगा और विकास से वंचित ही रह जायेंगे।  

अब, मुक्ति के विवेकवान व्यापारी के रूप में, आपको अलग तरीके से सोचना शुरू करना होगा। आप अच्छी तरह से जानते हैं कि व्यापार में प्रोडक्ट का ज्ञान , गुणवत्ता की गेरेंटी तथा ब्रांड बिल्डिंग और विश्वसनीयता तथा विभिन्न ग्राहकों के साथ जुड़ने का आनंद समय से सेवाओं की उपलब्द्धि यह सब कुछ आप को संतोष और विकास अनुभव करवा सकते हैं। यदि आप केवल मुनाफा प्राप्ति मन में न रखते हुए व्यापार की वृद्धि एवं ग्राहकों के साथ जुड़कर एक व्यापार की व्यापकता के साथ जुड़ते है तो धीरे धीरे आप विकास को अनुभव करेंगे। परिणाम के रूप में जो आपने व्यापार में हर कदम पर पूरी संवर्धनता डाली है; प्रत्येक कदम जिसके द्वारा आप दिन-प्रतिदिन विकास की और आगे बढ़ते रहे हैं वह संतोष आपके पास आता है । ( काबेल बनो कामयाबी स्वयं आ जाएगी )

सिद्धांत कहेता है कि – यदि हम प्रत्येक कदम को अपने आप में एक लक्ष्य के रूप में अपनाकर आनंद लेते हुए और हर कदम को अपना सर्वश्रेष्ठ देते हुए कार्य करते हैं, तो हम आंतरिक संतोष सामंजस्य एकता और मुक्तता का अनुभव करेंगे । किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कुछ अनिवार्य और कुछ ज़रूरी कदमों की आवश्यकता होती है।जैसे कि एक किसान को खेत में फसल उगाने के लिए विभिन्न चरणों का पालन करना पड़ता है। अगर किसान हर कदम को अपने आप में एक लक्ष्य के रूप में लेते हुए, पूरी मेहनत और समर्पण के साथ काम करता है, जैसे बीज बोना, सिंचाई करना, खरपतवार निकालना और फसल की देखभाल करना, तो वह आंतरिक संतोष का अनुभव करेगा। इस प्रक्रिया में, वह खेत में हर काम करने के दौरान सामंजस्य और एकता अनुभव करेगा।

जिस उदेश्य को हम प्राप्त करने के प्रयास में हैं – उस पर कुछ संभावनाएं-

१)उदेश्य की प्राप्ति हो जाती है किन्तु प्राप्ति का पर्याप्त आनंद अनुभव नहीं होता।

कुछ लोगो ने वह लक्ष्यों को प्राप्त कर लिया है , जिन लक्ष्यों का आज हम पीछा कर रहे हैं। फिर भी देखा जाये तो उनके पास वह शांति, आनंद और जीवन की पूर्णता और संतुष्टि नहीं है। सीधे शब्दों में, उन्होंने “कुशल श्रमिकों” की तरह उन उद्देश्यों को सिर्फ पूरा किया है।

२)जब हम किसी उद्देश्य की प्राप्ति नहीं कर पाते हैं, तो अक्सर हम उसके सभी चरणों को दोष देते हैं। उदाहरण – एक छात्र सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी में वह पूरे साल मेहनत करता है, पढ़ाई करता है, कोचिंग क्लासेज़ में जाता है, और अपने हर कदम को बड़े धैर्य और समर्पण के साथ पूरा करता है। लेकिन यदि वह अंतिम परीक्षा में सफल नहीं हो पाता, तो वह सोचता है कि उसकी सारी मेहनत और समय व्यर्थ हो गया। यह नकारात्मक दृष्टिकोण दर्शाता है कि वह अभी भी उद्देश्य की जंजीरों से बंधा हुआ है और परिणाम के गुलाम हैं। वह यह समझ नहीं पाता कि हर कदम में उसका विकास और सीखने का अवसर था। इसलिए, वह अपने प्रयासों का सही मूल्यांकन नहीं कर पाता ।

३)जब हम किसी उद्देश्य को प्राप्त नहीं कर पाते, लेकिन उस उद्देश्य की प्राप्ति की यात्रा के दौरान जितने भी चरणों से हम गुजरे, उनका आनंद लेते हैं, तो यह सकारात्मक दृष्टिकोण को दर्शाता है। उदाहरण – एक व्यक्ति एक कठिन पर्वतारोहण अभियान पर निकलता है। उसका उद्देश्य पर्वत की चोटी पर पहुंचना है।यात्रा के दौरान विभिन्न चरणों से वह गुजरता है: सुंदर प्राकृतिक दृश्यों का आनंद लेना, विभिन्न वन्यजीवों को देखना, साथी पर्वतारोहियों के साथ बातचीत करना, शारीरिक और मानसिक चुनौतियों का सामना करना। लेकिन अंत में, खराब मौसम के कारण उसे वापस लौटना पड़ता है और वह चोटी पर नहीं पहुंच पाता।फिर भी, वह कहता है, “हालांकि मैं चोटी तक नहीं पहुंच पाया, लेकिन इस यात्रा के दौरान मैंने बहुत कुछ सीखा और आनंद लिया।” यह दृष्टिकोण दिखाता है कि उसने यात्रा के हर चरण का आनंद लिया ,भले ही वह अपने अंतिम उद्देश्य तक नहीं पहुंच पाया।https://youtu.be/C3xis5XG7xs https://www.youtube.com/watch?v=C3xis5XG7xs

उदेश्य वह नहीं है जो हमें बेड़ियों में बाँधें – उदेश्य वह है जो हमें मुक्त करे।जब आप कुछ ऐसा प्राप्त करना चाहते हैं जिसे लाखों लोग भी प्राप्त करना चाहते हैं, तो आप यह नहीं कह सकते कि वह आपका उदेश्य हैं। आप का अस्तित्व एक अनोखे उद्देश्य के लिए है – जिसे केवल आप ही प्राप्त कर सकते हैं।चलिए इस पथ पर चलना प्रारंभ करे और खोजे अपने स्वयं के इस धरा पर होने के उदेश्य को … स्वयं को यह पूछे बिना मत लौटना कि “तुम इस पृथ्वी पर क्यों हो ?”

Kalindi Mehta

कालिंदी महेता की योग यात्रा के प्रारंभ में – “मन की बातें

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