सिद्धांत ७ The Principle of Immediate Action – यदि हम किसी उदेश्य का पीछा करते है तो हम स्वयं को बेड़ियों में बांध लेते है लेकिन यदि हम उदेश्य तक पहुँचने के दौरान जो भी कार्य को करते है उन कार्य को भी एक उदेश्य की तरह ही करे तो फिर हम स्वयं को मुक्त पाते है
सिद्धांत ७ हमें यह याद दिलाते हैं कि हमें अपने लक्ष्यों की ओर ले जाने वाले सभी मध्यवर्ती कदमों या स्थितियों से लाभ उठाना सीखना चाहिए।
किसी अवसर पर किसी सिद्धांत को इस या उस विशिष्ट स्थिति पर लागू करने का प्रयास करना हमेशा सहायक होता है, लेकिन क्या हो अगर हम वास्तव में इस सिद्धांत को अपने जीवन के दिल में शामिल करें? यह अस्तित्व का एक बहुत ही अलग तरीका खोल सकता है, “एमराल्ड पाथ”
हमारे इस सिद्धांत में गहराई से उतरने के प्रयास के साथ-साथ हम हमेशा इन सिद्धांतों को एक गतिशील और स्थायी ध्यान में बदलने की कोशिश कर रहे हैं। इसका मतलब यह है कि इन्हें हमारे जीवन के हर क्षण में लागू करने योग्य अभ्यास में बदलना। इस तरह, हम जीवन के साथ संलग्न होने के एक शैली या तरीके को आकार देते रहते हैं।
नई दृष्टिकोण प्राप्त करने के लिए, हम भी चर्चा करेंगे
अब सिद्धांत ७ के साथ जुड़कर एक विशेष चर्चा – आप सभी को यहाँ प्रस्तुत कहानी पर अपना विवेकपूर्ण अभिप्राय / द्रष्टिकोण व्यक्त करना है –
एक बार की बात है, एक दूधवाला था जो अपने सिर पर ताजे दूध का एक बड़ा मटका लेकर बाजार जा रहा था। जब वह अपना दूध बेचने के लिए जा रहा था, तो वह सोचने लगा: “आज मेरे पास सबसे ताजे और पौष्टिक दूध का मटका है। मुझे यकीन है कि मैं अपने इस दूध को कम से कम 100 रुपये में बेच सकूंगा। इस रकम से मैं एक बकरा और एक बकरी खरीदूंगा और अगले साल मेरे पास २० बकरियाँ होंगी। मैं उनमें से कुछ को बेच दूंगा और एक बैल और गाय खरीदूंगा। फिर साल में दो बार मेरे पास और मवेशी होंगे साथ ही और बकरियाँ भी होंगी। फिर मैं कुछ बछड़ों को बेचूंगा और घोड़े खरीदूंगा। घोड़े बहुत से बच्चे देंगे और मैं उनमें से कुछ को बेचूंगा और मैं उन रुपियों से एक बड़ा घर खरीदूंगा जिसमें बड़ा आँगन होगा और एक सुंदर युवती मेरे घर आएगी और हम शादी कर लेंगे। हमारा एक सुंदर बेटा होगा और हम उसका नाम “शेख्चल्ली” रखेंगे। जब वह बड़ा होगा, तो वह मेरे पास दौड़ता हुआ आएगा ,दूधवाला अपने दिवास्वप्न में खोया हुआ था कि उस रास्ते के एक पत्थर से टकरा गया जिसे उसने देखा नहीं और उसके सिर पर रखा दूध का मटका जमीन पर गिर पड़ा और टूट गया अब उसमें दूध की एक बूंद भी नहीं बची।
- दूधवाला तो अपने उदेश्य के बारे में ही सोच रहा था ।
- सामान्य रूप से “बिना कल्पना किये हम किसी भी लक्ष्य को जीवन में स्थापित नहीं कर सकते तथा कार्य भी नहीं कर सकते – क्या उदेश्य प्राप्ति के लिए कल्पना नहीं करनी चाहिए ?
- कल्पना करना और प्लानिंग करना इन दोनों में क्या फर्क हो सकता है ?
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Hame sabse pahele wartman ko samajana hai,, usko sawar kar rakhana hai.. use gratitude se dekhakar sukh lena hai aur uske sath sath future ki uplandhiyo ke bare me goal banana hai aur istarah se karya karna hai ke hamara wartman na bigade aur use bhi hum enjoy kare aur aaj acha hoga to kal jarur aur acha hoga.. goal set karenge aur aaj ko bhi enjoy karenge usko pane ki prakriya me
वाह बहुत अच्छे से आप ने अपना द्रष्टिकोण शेयर किया है …धन्यवाद