The Principle of The Union – The Principle of Solidarity – When you treat others as you want them to treat you, you liberate yourself. अर्थात दूसरों के साथ वैसे ही व्यवहार करें जैसा व्यवहार आप चाहते हैं कि आपके साथ किया जाए ।
इस सिद्धांत के अनुसार, हमें दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करना चाहिए जैसा व्यवहार हम उनसे अपने लिए चाहते हैं। आप चाहते हैं कि आपकी पत्नी, पति, बच्चे, मित्र, बॉस, सहकर्मी, परिवारजन, माता-पिता, या पड़ोसी आपके साथ कैसा व्यवहार करे?
आप क्या चाहते है कि आपका घर, आपके पौधे, या फर्नीचर और इलेक्ट्रॉनिक वस्तुएं आपके साथ कैसा व्यवहार करें? निर्जीव वस्तुएं, पक्षी, और पौधे भी आपके व्यवहार के अनुसार प्रतिक्रिया देते हैं । क्या यह कभी अनुभव किया है ?
अब इस बात पर विचार करें कि आप दूसरों से किस प्रकार का व्यवहार चाहते हैं। उदाहरण के लिए, यदि आप अपने जीवनसाथी से धैर्य की उम्मीद करते हैं, तो सिद्धांत कहेता है कि आपको भी उनके साथ धैर्यपूर्वक व्यवहार करना होगा। यदि आप चाहते हैं कि आपके बच्चे आपकी बातें सुने, तो आपको भी उनकी बातें ध्यान से सुननी होगी। अगर आप चाहते हैं कि आपके माता-पिता आपको समझें, तो आपको भी उनकी बातों को धैर्यपूर्वक सुनना और समझना होगा।
सिद्धांत ९ “कारण और प्रभाव” के अनुसार जैसा व्यवहार आप दूसरों के साथ करते हैं वैसा ही व्यवहार आप उनसे प्राप्त करते हैं, अब सिद्धांत १० कहेता है कि दूसरों के साथ वैसे ही व्यवहार करें जैसा व्यवहार आप चाहते हैं कि दुसरे आपके साथ करे । अर्थात आप भी उनसे वही व्यवहार प्राप्त करेंगे जो व्यवहार आप उनके साथ करते है। इसलिए, सजगता से वैसा ही व्यवहार करना शुरू करें जैसा आप दूसरों से चाहते हैं।
आप जो भी कार्य या व्यवहार दूसरों के साथ करते हैं, आपको उसी का परिणाम या प्रति व्यवहार , बल्कि उससे भी अधिक, लौटाया जाएगा । अब हमारे पास अपनी नई दुनिया बनाने और अपने इच्छित भविष्य का निर्माण करने का अवसर है। यह अब हमारे हाथों में है। अगला कदम उठाना आपका निर्णय है। लेकिन इस सफर में धीरज और समझदारी से काम लें; आपने जो सीखा है, उसे अमल में लाएं। यह अपेक्षा न करें कि आपकी पत्नी या जीवनसाथी अचानक समझदार हो जायेंगे ; आपको उनको अपने धैर्यपूर्ण व्यवहार से – प्रेम से प्रेरित करना होगा।
हर इंसान के भीतर सभी गुण मौजूद होते हैं—जैसे प्रेम, दया, करुणा, देखभाल, बुद्धिमत्ता, समझदारी, प्रतिबद्धता। साथ ही, नकारात्मक गुण जैसे स्वार्थ, हिंसा, ईर्ष्या, और क्रूरता – हमारे भीतर भी हैं। मनुष्य के भीतर संसार की सभी अच्छाइयां और बुराइयां पाई जाती हैं। इस सच्चाई को समझें और स्वीकार करें।
दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करें जैसा व्यवहार आप चाहते हैं कि वे आपके साथ करें। सूत्र बहुत सरल है, क्योंकि सभी मनुष्यों में उनके सृजनकर्ता की सभी विशेषताएँ होती हैं। किन्तु हमने इस दुनिया से विरासत में मिली सारी गंदगी भी इकट्ठा की है : स्वार्थ, घमंड, अहंकार, लापरवाही। हमारे दूसरों के प्रति व्यवहार के अनुसार वे प्रतिक्रिया करेंगे क्योंकि यह क्रिया और प्रतिक्रिया का नियम है। दूसरों के प्रति आपका व्यवहार “क्रिया” है ; उनकी प्रतिक्रिया उसी प्रकार आपके पास वापस आएगी लेकिन अधिक शक्तिशाली होगी – यही नियम है।
हम अपने प्रियजनों से क्या चाहते हैं? यदि हम नहीं चाहते कि कोई हमसे झूठ बोले, तो हमें भी हमेशा सच बोलना होगा। यदि हम चाहते हैं कि लोग आपके प्रति सद्भावना और शुभ भावना रखें, तो आपको भी उनके प्रति सद्भावना और शुभ भावना से व्यवहार करना होगा। लेकिन यह केवल शब्दों से नहीं हो सकता, इसे व्यवहार में लाना पड़ेगा।
तो फिर इसे कैसे अमल में लाया जाए ? इसका उत्तर आपके कर्मों में छिपा है। जिस व्यवहार को आप दूसरों से पाना चाहते हैं, उसे पहले अपने कर्मों के द्वारा प्रदर्शित करें।
आपको उन सभी लोगों की सूची बनानी है जिनसे आप अक्सर मिलते हैं या जिनके साथ आपका संपर्क रहता है। अब आपको उनकी सर्वोत्तम गुणों और विशेषताओं को पहचानकर, उन्हें उजागर करना है और उनकी सराहना करनी है। यह प्रतिबद्धता के साथ करें और कोशिश करें कि आप उन गुणों को उनके सामने भी व्यक्त करें।
आपको सजगता के साथ उन लोगों से वैसा ही व्यवहार करना होगा जैसा आप उनसे पाने की अपेक्षा रखते हैं। जैसे, “आज मैं अपने माता-पिता के प्रति या भाई बहन के प्रति करुणा और सद्भाव से पेश आऊंगी,” “आज मैं अपने साथी के प्रति विचारशील रहूंगी,” या “आज मैं अपने मित्र की या संतान की बात ध्यान से सुनूंगी।” यह अभ्यास आपको दूसरों के साथ संबंधों को सुधारने के लिए दैनिक लक्ष्य निर्धारित करने में मदद करेगा, जिसमें आपके पड़ोसी, पौधे, पक्षी और अन्य जीवन भी शामिल हैं। इस अभ्यास को सजगता से करें और फिर परिणाम के लिए प्रतीक्षा करें। नियम को काम करने दें।
अब, इसे अमल में लाने में कौन-कौन सी बाधाएँ हो सकती हैं? कौन सी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है?
*हमारा मन सबसे पहले यही कहेगा: “हम तो मन की पूरी शुद्धता से दूसरों के साथ व्यवहार कर रहे हैं, लेकिन वे कभी सही प्रतिक्रिया नहीं देते। आखिर कब तक मैं अच्छा बना रहूं? मेरा भी कोई आत्मसम्मान है या नहीं?”
*हम रिश्तों की दूरी मिटाने के लिए सौ कदम चलते हैं, लेकिन वे दो कदम भी आगे नहीं बढ़ते। तो फिर कब तक हम ही रिश्ता सम्हाले रहें?
*हम लगातार कोशिश करते हैं कि रिश्ते में खटास खत्म हो जाए, लेकिन उनकी तरफ से कभी कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं आती।
ऐसा क्यों होता है? हमारा हर प्रयास इस सन्दर्भ में क्यों असफल रहेता है ?
स्वयं से पूछें – निष्ठा और प्रमाणिकता से स्वयं को उत्तर दें—क्या हम सच में चाहते थे कि रिश्तों में जो दूरी थी, वो मिट जाए?
क्या हम खटास को मिटाने के साथ-साथ मिठास भरने के लिए प्रतिबद्ध थे?
क्या आप अपने सुझावों को अपनी महानता साबित करने या दूसरों को बुद्धिहीन साबित करने के लिए दे रहे थे, या सच में उनका भला चाहते थे ?
अगर आपके हर प्रयास के बावजूद आप दूसरों के साथ अपने संबंधों को सामंजस्यपूर्ण बनाने में सफल नहीं रहे, तो हो सकता है कि आपके व्यवहार में “सद्भावना” का अभाव हो।
सद्भावना क्या है? यह आपके अच्छे इरादे और दूसरों के साथ आपके संबंधों के लिए आपकी शुभेच्छाएं हैं। आपकी सद्भावना तभी प्रकट होगी जब आप अपने मन और स्मृति से दूसरों के साथ अपने सभी पिछले संघर्षों को मिटा देंगे। जब तक मन के किसी कोने में वह संघर्ष की छाया बनी रहेगी, तब तक आपके भीतर सच्ची सद्भावना नहीं जागेगी। हो सकता है कि आपको कभी कभी लगे कि आपके भीतर सद्भावना जागी है , लेकिन वह केवल भ्रम होगा। सच्ची सद्भावना तभी प्रकट होगी जब आपका मन संघर्ष से पूरी तरह मुक्त हो।
*शुद्ध अंतर मन की सद्भावना को जगाये कैसे ?
शुद्ध अंतर्मन की सद्भावना जगाने के लिए दिन में एक बार केवल 5 मिनट समर्पित करें। अपनी आँखें बंद करें और अपनी मानस पर उस व्यक्ति की छवि प्रकट करें जिसके साथ आप जुड़ना चाहते हैं। कल्पना करें कि आप दोनों के बीच संवाद में सामंजस्यता है, और अतीत की सभी समस्याएँ समाप्त हो गई हैं। मन में देखें कि आपका उस व्यक्ति से संबंध शांति और सामंजस्य से भरा है।
अब सवाल यह है कि हमें कैसे पता चलेगा कि सच्ची अंतर्मन की सद्भावना जागी है या नहीं? शुद्ध सद्भावना की सच्ची अनुभूति का अभ्यास एक सरल विधि से करें।
अभ्यास – एक दर्पण के सामने खड़े हों, अपनी परछाई को देखें और मुस्कुराएं। अपने चेहरे की सभी मांसपेशियों को आराम देते हुए, सच्चे दिल से मुस्कुराने का प्रयास करें। सद्भावना और मैत्रीभाव से मुस्कुराने का अभ्यास करें ताकि आपके भीतर की सामंजस्यता विकसित हो सके। अपने चेहरे की मांसपेशियों और विशेषताओं का अवलोकन करें, और अपनी आँखों में दिखने वाली दृष्टि को भी ध्यान से देखें। आप क्या देखते हैं? हो सकता है कि आपके चेहरे पर मुस्कान हो, लेकिन आपकी आँखों में गुस्सा, ईर्ष्या, या द्वेष भरा हुआ हो। यह भी संभव है।
सद्भावना का अभाव हमारे संबंधों को प्रभावित करता है। कितनी बार ऐसा हुआ है कि जब आप किसी व्यक्ति से संपर्क करते हैं, उसे प्यार या मैत्री करना चाहते हैं , लेकिन आपके हावभाव में संवेदनशीलता की कमी का संकेत होता है – यह इसलिए होता है क्योंकि हमारे अंदर का वह हिस्सा, जिसने हमें नियंत्रित किया, वह हमारी आँखों के माध्यम से प्रकट हो जाता है।दूसरों को यह एहसास नहीं होता कि हमने उनसे संपर्क करने में सर्वोत्तम उद्देश्य रखे थे; जो उन्होंने देखा, वह हमारी आँखों, हमारी दृष्टि, और हमारे चेहरे के हावभाव से था।
पहला कदम है मानसिक प्रक्षेपण का अभ्यास करना।
दूसरा कदम है सच्ची मुस्कान का अभ्यास करना।
तीसरी गतिविधि है सजगता ।
चौथा कदम यह है कि कई महीनों तक, जब भी अवसर मिले, अपने मन को दूसरों के व्यवहार पर ध्यान देने के लिए तैयार करें। अपने आप से पूछें, “यह व्यक्ति मुझसे इस प्रकार से क्यों व्यवहार करता है?”
उदाहरण के लिए, “मेरा जीवनसाथी ऐसा क्यों है?” आप देखेंगे कि हम भले ही इंसान हैं, लेकिन दुर्भाग्यवश, हमारी समझ और बुद्धिमत्ता हर चीज़ तक नहीं पहुंच पाती। हम शायद ही कभी स्वयं को दूसरों की जगह पर रखते हैं, शायद ही कभी समझते हैं कि वास्तव में उनके दिल को क्या चोट पहुंचा रही है। यह शारीरिक बीमारियाँ, संघर्ष, समस्याएँ, बाधाएँ, या आर्थिक स्थिति हो सकती हैं। जब हम दूसरों के साथ संबंधों में जुड़ते हैं, तो हम उन तथ्यों से अवगत नहीं होते। हम केवल दूसरों से प्रेम और देखभाल की अपेक्षा करते हैं, और जब ऐसा नहीं होता, तो हम उन्हें दोषी ठहराते हैं। यह सही तरीका नहीं है। सभी दिल दुख से दबे हुए हैं, लोग अवसाद में होते हैं, और समस्याएँ सतह पर बिना समाधान के लगती हैं। हमारा कर्तव्य है इसे समझना और अपने संबंधों में सच्ची सद्भावना को जागृत करना।
जब आप किसी से मिलते हैं और देखते हैं कि वह व्यक्ति उदास है, तो उससे शानदार व्यवहार की उम्मीद न करें। इसके बजाय, स्वयं को उसकी जगह पर रखें। यह समझने की कोशिश करें कि वह व्यक्ति किस वजह से परेशान है। चाहे कारण कुछ भी हो, उसे अपनी सद्भावना दिखाएं और उसकी बात ध्यान से सुनें। अब, सोचिए कि जब आप स्वयं किसी परेशानी में होते हैं और कोई आपके पास आता है, तो आप किस तरह के व्यवहार की उम्मीद करते हैं? क्या आप नहीं चाहेंगे कि वह व्यक्ति आपको समझने की कोशिश करे और आपको इस तरह सुने जैसे वह पूरी तरह से आपके लिए मौजूद हो?
आप, जो जीवन के नियमों को समझने की राह पर हैं, यह सुनिश्चित करें कि आप दूसरों के प्रति सबसे अद्भुत व्यवहार (सद्भावना) प्रदर्शित करें। आपके व्यवहार से अन्य लोग सीखेंगे। आप स्वयं के व्यवहार के द्रष्टान्त से उन्हें यह दिखा रहे होंगे कि कैसे उचित तरीके से व्यवहार करना चाहिए।
हमें ऐसा लगता है कि हमारे परिवारजन या जीवनसाथी को दयालु और समझदार होना चाहिए। लेकिन अगर वे रोज़ आपकी दयालुता, समझदारी, विचारशीलता, और धैर्य को देखते हैं, तो वे धीरे-धीरे सीखेंगे और वैसा ही व्यवहार करने लगेंगे। आप एक बार धीरी पूर्ण प्रयास तो शुरू करे।
यह एक नियम है, और इसे न भूलें। हम अकेले नहीं रह सकते; हमें दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करना, उनके साथ रहना सीखना चाहिए। यह सबसे बड़ी संपत्ति है। दूसरों के साथ अच्छे संबंध हमें समय, शक्ति, और इच्छाशक्ति प्रदान करेंगे, जिससे हम अपने महत्वपूर्ण लक्ष्यों को प्राप्त कर सकेंगे।
हमारी संतान जब वे हमारे साथ रहते हैं, तो वे हमारे गुस्से, बुरे मूड, असहमति, और असामंजस्यपूर्ण चीजों को अनुभव करते हैं। यह सब उनके मन में दर्ज हो जाता है साथ ही वे विचारशील और समझदार व्यवहार, दयालुता, समझ, और प्रेम को भी दर्ज करते हैं। अपने बच्चों के साथ वैसे ही व्यवहार करें जैसे आप अपने जीवन के वयस्कों के साथ करते हैं। इन सिद्धांतों का पालन करने से आप और आपका परिवार इस दुनिया में बहुत से दुखों से बच सकते हैं।
इन अभ्यासों को जारी रखें, अपने संबंधों में सुधार करें; अपने आप को संतुलित करें; दूसरों को नुकसान न पहुँचाएं, नहीं तो आप स्वयं ही बंध जाएंगे। हर किसी के साथ वैसा ही व्यवहार करें जैसा आप चाहते हैं कि आपके साथ किया जाए। क्योंकि ज़रा सोचिए, अगर अचानक आपको पता चले कि आपके पास दोस्त नहीं हैं, तो आप क्या करेंगे? अगर आपके बच्चे आपको छोड़ दें, तो आप क्या करेंगे? आपका जीवनसाथी आपसे बात नहीं करेगा, तो आप क्या करेंगे? आपके माता-पिता आपको नहीं देखेंगे, तो आप क्या करेंगे? यह सबसे बुरा समय होगा—पूरी तरह से अकेले रह जाना। यह मत सोचिए कि यह आपके साथ नहीं हो सकता, क्योंकि यह उन लाखों लोगों के साथ हो रहा है जो रोज़ इन दो सिद्धांतों (सिद्धांत ९ और १०) का उल्लंघन करते हैं।
इन सिद्धांतों के उल्लंघन का परिणाम क्या हो सकता है? एक दिन आप एक अच्छा दोस्त खो देंगे, अगले दिन किसी भाई या बहन से रिश्ता खो देंगे। हर बार जब वे नया दोस्त बनाते हैं या एक नया संबंध बनाते हैं, तो उनका बुरा स्वभाव और समझ का अभाव दूसरों की अस्वीकृति का कारण बनता है। जीवनसाथी और परिवार के साथ संघर्ष, बच्चों के साथ अस्वस्थ रिश्ते—यह सब अंततः एकाकीपन की ओर ले जाता है। इसीलिए, इन सिद्धांतों को समझना और उनका पालन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
सिद्धांत १० बताता है कि यदि आप दूसरों के साथ वैसे ही व्यवहार करेंगे जैसे आप चाहते हैं कि वे आपके साथ करें, तो आप “स्वयं को मुक्त कर लेंगे”। कैसे ?
जब हम अपने व्यवहार में 100% प्रमाणिकता रखते हैं, और हमारा व्यवहार दूसरों की भलाई और कल्याण के लिए होता है, तो हम वास्तव में स्वयं से संतुष्ट और मुक्त अनुभव करते है क्योंकि जब हम यह जान लेते है कि हमारी मुक्ति दूसरों के व्यवहार या प्रतिव्यव्हार में नहीं, बल्कि अपने व्यवहार में निहित है।
मन में बंधन तब उत्पन्न होता है जब हम यह अपेक्षा रखते हैं कि दूसरा भी हमारे साथ वैसा ही व्यवहार करेगा जैसा हमने उनके साथ किया है। यही अपेक्षा हमें बांध देती है, और हम फिर से बंधन में फंस जाते हैं।
यदि आपका व्यवहार बिना किसी अपेक्षा के है , तो आप वास्तव में मुक्त हो जाते हैं। आपकी मुक्ति आपके अपने व्यवहार में निहित होती है, न कि दूसरों के व्यवहार में।
अक्सर हम सोचते हैं, “मैंने दूसरों के साथ भला व्यवहार किया है, तो वह दूसरा भी मेरे साथ वैसा ही व्यवहार करेगा।” जब वह व्यक्ति हमारी उम्मीदों के अनुरूप व्यवहार नहीं करता, तब हम या तो निराश हो जाते हैं या क्रोधित। फिर हमें यह सोचने पर विवश हो जाते है कि ऐसे सिद्धांत का क्या फायदा, जहाँ हमें शोषित अनुभव करना पड़े, और दुख की अनुभूति हो। इससे तो अच्छा है कि हम- “दूसरों से वैसा ही व्यवहार करे , जैसा व्यवहार वे हमारे साथ करते हैं।” “ज़हर को ज़हर ही काटता है।” लेकिन क्या यही ज़हरीला व्यवहार दुनिया में हर जगह ज़हर नहीं फैला रहा?
यदि हम गहराई से समझें, तो सिद्धांत 10 में एक बड़ा आशीर्वाद छुपा है। यह सिद्धांत अपेक्षाओं से जुड़ा सिद्धांत नहीं है; यह तो मुक्ति प्राप्ति का मार्ग है, जहाँ शुद्ध व्यवहार की बात है।
इस सिद्धांत का गहरा और व्यापक अर्थ है कि हमें दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करना चाहिए जैसा हम चाहते हैं कि हमारे साथ किया जाए। जब हम ऐसा करते हैं, तो हम स्वयं को स्वतंत्र कर लेते हैं। अर्थात, अगर हम दूसरों के साथ सम्मान और अच्छाई से व्यवहार हैं, तो हम अपनी आत्मा को शांति और मुक्ति का अनुभव कराते हैं, चाहे दूसरे वैसा ही व्यवहार करें या नहीं।
सिद्धांत 10 के साथ जुड़े हुए कुछ महत्वपूर्ण पहलु –
*यह जरूरी नहीं कि “दूसरे” वही लोग हों जिनके साथ आपने अच्छा व्यवहार किया हो। “दूसरे” किसी भी रूप में हो सकते हैं—कोई व्यक्ति, स्थिति, या घटना।
*”दूसरों के साथ वैसे ही व्यवहार करें” का अर्थ केवल मनुष्यों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें सभी जीवित और निर्जीव तत्व शामिल हैं। इसका अर्थ यह भी है कि आपका भी “दूसरों” की व्याख्या में समावेश है—वह जो आपके भीतर रहता है और आपसे भिन्न होता है। ( द्रष्टा )
*“हमें दूसरों के साथ ऐसा व्यवहार करना चाहिए जैसा हम चाहते हैं कि हमारे साथ किया जाए”। इसका अर्थ यह है कि हमें अब स्वयं से यह अपेक्षा करनी होगी कि हम वैसा व्यवहार करें जैसा हम दूसरों से अपेक्षित करते हैं।
*जब आपके साथ अपेक्षाओं के विपरीत व्यवहार होता है, तो स्वयं से यह पूछें कि कहीं आपने अनजाने में किसी के साथ ऐसा विपरीत व्यवहार तो नहीं किया?
*आपके द्वारा किए गए भले व्यवहार का परिणाम आपको किसी भी आज, कल, या एक हफ्ते या समय के चलते कुछ महीनों या सालों बाद मिल सकता है। दूसरों से प्रतिव्यव्हार की प्राप्ति की कोई निश्चित समय सीमा नहीं होती, और यह किसी भी व्यक्ति से या स्थिति से या घटना से प्राप्त हो सकता है।
*आपके भले व्यवहार का परिणाम हमेशा अधिक या कई गुना अधिक होगा। इसका मतलब है कि आपके द्वारा किए गए अच्छे कार्यों का परिणाम भी अच्छे और विस्तृत रूप में आपको मिलेगा।
*आपके अच्छे व्यवहार का परिणाम विभिन्न रूपों में प्राप्त हो सकता है, जैसे उत्तम स्वास्थ्य, समृद्धि, परिवार में खुशी, व्यापार में वृद्धि, कार्यों में सरलता , और जीवन में सामंजस्य।
सिद्धांत कहेता है कि जब आप दूसरों के साथ अच्छाई और सम्मान से व्यवहार करते हैं, तो यह अच्छाई आपके जीवन में कई गुना लौटती है। इन सिद्धांतों का पालन करने से आप दुनिया को बदलें या न बदलें, लेकिन निश्चित रूप से आप खुद को आंतरिक बन्धनों और विरोधाभासों से मुक्त कर पाएंगे। आप एक उत्तम मानव होने के उन तमाम गुणों को धारण करने लगेंगे , जो आपको एक दिव्य तत्व का अंश बनाते हैं, और जीवन में सहजता से जीने की कला सिखाते हैं।
यह आत्मनिरीक्षण आपको अपने व्यवहार में सुधार करने और दूसरों के प्रति अधिक समझदारी से पेश आने में मदद करेगा। इन दो सिद्धांतों का पालन करके, आप न केवल अपने जीवन को संतुलित कर सकते हैं, बल्कि अपने आस-पास के लोगों के जीवन में भी सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं।