नमस्ते , कुछ समय पूर्व एक अखबार में मैंने एक मन के खेल का लेख पढ़ा था …बहुत ही रोचक लेख होने के कारण उस पर कुछ मनन कार्य करने का अवसर मिला …आज वही मनन चिंतन कार्य शेयर कर रही हूँ –
मानव मन के मुख्य चार प्रकार समजने के लिए चार प्रकार के अश्वों के स्वभाव के उदहारण से शुरुआत करेंगे…
चार प्रकार के स्वभाव वाले अश्वों में से –
एक बहुत ही उमदा अश्व होता है जब मालिक उस उमदा अश्व की पीठ को हाथ से थपथपाता है उसी क्षण वह अश्व समज जाता है कि मालिक उससे क्या चाहता है ; यह उमदा प्रकार का अश्व उसी क्षण से जागृत हो जाता है और हिनहिनाकर मालिक को जताता है कि वह तैयार है…
दुसरे प्रकार के अश्व को केवल थपथपाकर जागृत नहीं किया जा सकता , मालिक हवा में चाबुक को घुमाता है तब यह दुसरे प्रकार का अश्व हिनहिनाता है और मालिक को जताता है की वह अब सवारी के लिए तैयार है…
तीसरे प्रकार के अश्व को समजाने के लिए हवा में चाबुक को घुमाना पर्याप्त नहीं होता इस प्रकार के अश्व को समजाने के लिए एकादी चाबुक का उपयोग अश्व के शरीर पर प्रयोग किया जाता है तब इस तीसरे प्रकार का अश्व मालिक की इच्छा को समजकर आज्ञा का पालन करता है…
चौथे प्रकार का अश्व – इस अश्व को थपथपाने से या हवा में चाबुक घुमाने से या चाबुक का प्रयोग उस पर एक बार करो या बार बार इस अश्व पर कोई असर नहीं होता ,यह बिलकुल ही नठोर प्रकार के स्वभाव वाला अश्व होता है. मालिक की इच्छा जानकर और इतनी चाबुकों का कष्ट पाकर भी वह चौथे प्रकार का अश्व अपने वर्तन में कुछ भी सुधार नहीं लाता वह बिलकुल ही मूढ़ वृत्ति का अश्व होता है .
ऐसे मूढ़ अश्व के पीछे समय ,शक्ति संपत्ति और श्रम को व्यय न करते हुए, उस चौथे अश्व को उसके अपने कर्म के आधार पर छोड़कर हमें उन तीन अश्वों के साथ काम करने में जुट जाना चाहिए.
अब देखते है की यहाँ जो चार प्रकार के स्वभाव वाले अश्वों की बात कही है क्या मन रूपी अश्व की तुलना इन चार अश्वों के प्रकार और स्वभाव के साथ हम कर पाते है या नहीं ?
सबसे पहले उमदा अश्व जो मालिक के केवल थपथपाने से ही मालिक के मन की इच्छा को समज लेता है … और अपनी हिनहिनाहट से यह जताता है कि वह सतर्क है…और तैयार है …वैसे ही प्रशिक्षित मन का स्वभाव भी चित्त की भूमि पर वृत्तियों के वेग उत्त्पन्न होने पर आवश्यक सतर्कता से… सजगता से उन वृत्तियों का नियमन करता है…
दूसरा अश्व जो केवल हवा में चाबुक घुमाने पर कार्य करने तैयार हो जाता है , उस स्वभाव का मन- वृत्तियों को नियमन करने के लिए स्व अध्यन करते रहता है ” इस स्थिति में मेरे लिए क्या उचित है ? क्या नैतिक है ? क्या जरुर्री है ” ऐसे प्रश्नों पर चिंतन करके मन में उद्भव हुई वृत्तियों को नियमन करने के पर्यायों को प्रयोग करता रहता है
तीसरा अश्व जो एक या दो चाबुक के प्रयोग से कार्य करने को तैयार कर सकतें है वैसे स्वभाव वाले मन रूपी अश्व को मन में उद्भव होती हुई बेलगाम वृत्तियों को नियमन करने का एक उपाय है तप और साधना अभ्यास…
मन को थोडा सा संयम पालन और परिश्रम के साथ कार्य करवाने से मन अपनी भटकती हुई वृत्तियों का नियमन करना सिखने लगता है …
चौथा अश्व मूढ़ स्वभाव वाला है जो मालिक की इच्छा को समजता है किन्तु उस पर किसी भी रूप में कार्य करने को तैयार नहीं है…यदि मन उस मूढ़ अश्व के जैसे स्वभाववाला है तो क्या करें?
मन को कैसे कोई त्यागे ? यह असंभव है …
मन चित्त की वृत्तियों के साथ भटकता ही रहता है…उसे नियंत्रण में कैसे लाया जाए?
अगले ब्लॉग में इस पर कार्य अभ्यास करेंगे …
तब तक अपने मन के स्वभाव को जाने और जाँचे…
सब का मंगल हो कल्याण हो
सब सुखी रहे … सब स्वस्थ रहे
इस मंगल कामना के साथ
भवतु सब्ब मंगलम
सटीक उदाहरण देकर उमदासमज प्राप्त हुई। अपने मन ओर चित के चिंतन का अभ्यास करने की कोशिश करने अवसर प्रदान करने केलिए धन्यवाद ।
धन्यवाद …
इतनी सरलता से उदाहरण देकर समझने के लिए हमें अपने मन को समझने का मौका दिया उसके लिए आपका बहुत-बहुत आभार, व्यक्त करते हैं धन्यवाद 🙏
धन्यवाद जी
धन्यवाद
આપનો ખુબ જ આભાર