लड़के का नाम था अभिज्ञान. वह हमेशा ही दुखी रहता था जब सुबह उसकी माता उसे स्कूल जाने के लिए जगाती थी तब से उसका दुःख शुरू हो जाता था…फिर जब स्कूल जाता तब भी उदासी से मन भरा रहेता था सोचता था यह स्कूल क्यों होती है ?
हर पल उसे कुछ न कुछ दुःख बना ही रहता था…फिर एक दिन स्कूल के बाद वह एक दिन स्कूल के पास वाले जंगल में गया…जंगल में यहाँ वहां भटकता रहा फिर एक पेड़ के नीचे आराम करने लगा…वहां एक सुनहरे बालों वाली एक परी प्रकट हुई और अभिज्ञान से बाते करने लगी …अभिज्ञान ने परि को कहा कि वह अपने जीवन से बहुत ही दुखी है…तब परी ने उसे एक सुनहरे धागे का रोल दिया और कहा “जब भी तुम्हें जीवन की किसी परिस्थिति को अपने जीवन से pass on कर देना हो तब उस सुनहरे धागे के रोल से थोडा सा धागा खिंच लेना जीवन से वह समय skip हो जायेगा…किन्तु याद रहे की जो धागा खिंच लिया वह फिर से रोल में लगा नहीं पाओगे”
अभिज्ञान को तो जैसे लोटरी लग गयी दुसरे दिन सुबह थोडा सा धागा खिंच कर trial देख लिया…देखा की सुबह मम्मी की कटकट से बचकर वह सीधा ही स्कूल में आ गया था अब टीचर पढ़ा रही थी…अभिज्ञान ने थोडा सा धागा खिंच लिया तो स्कूल में रिसेस का समय आ गया , रिसेस में कुछ दोस्तों के साथ मनमुटाव हो गया तो अभिज्ञान ने धागा खिंच लिया…जैसे ही धागा खिंचा अभिज्ञान फिर से अपने घर आ गया अब घर में आकर फिर से मम्मी कहने लगी की अभिज्ञान स्कूल का होमवर्क तो कर लें , मम्मी की इस बातों का टी.वी. देखते हुए अभिज्ञान को मजा नहीं आ रहा था…अभिज्ञान ने सोचा थोडा ज्यादा धागा खिंच लेता हूँ… अभिज्ञान अब कोलेज में था…कोलेज में मजा करने का मन बनाया था किन्तु कोलेज में तो अधिक पढाई थी अब फिर से मजा नहीं आ रहा था…
सोचा- इस ग्रेजुएशन के चक्कर से छुटकारा मिल जाए तो शांति…थोडा धागा और अधिक खिंच लिया अभिज्ञान नौकरी की तलाश में यहाँ वहां चप्पलें घिस रहा था अरे भगवान् यह कैसा दौर है ? इतना परिश्रम ? मजा नहीं आ रहा है …इस महेनत से बचने के लिए फिर से थोडा धागा खिंच लिया , अब अभिज्ञान का अपना घर था …अपना परिवार था …बीवी बच्चे थे … किन्तु बच्चों की पढाई को लेकर और बीवी की बातों को सुनकर अब अभिज्ञान को मजा नहीं आ रहा था …
माता पिता की फोटो तो दीवार पर कब की टंग चुकी थी , अभिज्ञान ने सोचा अब ये बच्चे जल्दी बड़े हो जाए तो कुछ मजा आएगा …चलो थोडा सा धागा खिंच लूँ और धागा खिंच लिया …अब बच्चे तो अपनी अपनी जिन्दगी में व्यस्त थे , बीवी की तस्वीर भी दीवाल पर टंग गयी है…
अभिज्ञान अकेला रह गया था…तब उसे ज्ञान हुआ कि वह कितना बुढा हो गया था…समय कितना जल्दी हाथ से निकल गया…जीवन जीने में कुछ मजा नहीं आया , जीवन में कुछ खालीपन था ,कुछ अधूरापन था…उसने सुनहरे धागे के रोल को देखा अब कुछ सांसों का ही खेल था…
अभिज्ञान फिर से वही जंगल में अकेला जाता है और उसी पेड़ के निचे बैठता है सुनहरे बालों वाली परी फिर से प्रकट हुई और बोली- अभिज्ञान जीवन का लुफ्त उठाया की नहीं ?
अभिज्ञान कुछ देर तक ऐसे ही खामोश बैठा रहा…फिर उसने कहा कि कुछ मजा नहीं आया…
परी ने पूछा – क्यों तुम्हारे पास तो जादू था ?
अभिज्ञान बोला- जादू तो जीवन जीने में था जो मैंने कभी जाना ही नहीं…
जब मम्मी सुबह सवेरे उठाती थी तब उसका प्रेम भरा स्पर्श मिलता था सुबह उठकर उगते हुए सूरज की कोमल धुप में स्कूल जाना भी कितना मजेदार था…जो मैंने सदा के लिए skip कर दिया …
स्कूल में अपने दोस्तों के साथ मिलकर खेलने का , रूठने का मनाने का मज़ा और रिसेस में खाना share करने के आनंद को भी मैंने skip कर दिया…
घर में अपने परिवार के साथ वक्त बिताने का समय भी मैंने skip कर दिया था इस कारण परिवार का प्रेम क्या होता है उसका अनुभव और आनंद मुझे नहीं मिला …
महेनत से कमाई हुई रोटी का आनंद भी कभी ले नहीं पाया…बीवी के साथ कोई आत्मीय पल स्थापित नहीं कर पाया…अपने दाम्पत्य जीवन की कोई खट्टी मीठी पलों को जी नहीं पाया , अपने बच्चों के साथ उनके बचपन में उनके साथ खेल नहीं पाया , जीवन के हर पल को जी कर जो मजा और आनंद मुझे लेना चाहिए था वह सब कुछ मैंने…भविष्य के सुख के छलावे में गँवा दिया…
न बचपन का मजा लिया…न युवानी का जोश अनुभव किया…न परिपक्वता का अनुभव किया…न वृद्धावस्था में अपने जीवनसाथ के हाथ की ऊष्मा का अनुभव किया…सब कुछ मैं मुर्ख skip करता चला गया…
परिस्थित थोड़ी विपरीत क्या हो गयी तो मैंने उसे skip कर दी किन्तु यह नहीं सोचा की इन विपरीत परिस्थितियों से बहार आने के लिए हम कितने लोगों के साथ जुड़ते है…प्रेम ,विश्वास ,हिम्मत जैसे भावों का अनुभव पाते है…परिवार के साथ खुशियाँ मनाना , दोस्तों के साथ मस्ती मजाक करना , अपने जीवन साथी के साथ हाथ में हाथ डालकर समद्र किनारे रेत पर चलने का आनंद, अपने बच्चों के साथ बारिश में भीगने का मजा लेना, अपने बच्चों का जन्मदिन मनाना… सब कुछ skip हो गया …
जब विपरीत स्थिति से बहार आते है तो कुछ हांसिल करने का अनुभव…कुछ नया सिखने का जीवन में उत्सव मनाते है वह सारे पल..वह सारे उत्सव…
सब कुछ skip हो गया…
स्वयं से पूछें – क्या हम भी जीवन के अनमोल पलों को skip तो नहीं कर रहे है ?